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________________ - - ४०० भगवतीसूत्रे गौतमः पृच्छति-'पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं पुच्छा?' हे भदन्त ! पञ्चेन्द्रियतिर्यग्यानिकानां विषये पृच्छा । तथा च-पन्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः किं सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानिनः, किंवा देशमूलभूणप्रत्याख्यानिनः, अथवा अभत्याख्यानिनो भवन्ति ? भगवानाह-'गोयमा ! पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णो सव्वमूलगुणपच्चक्खाणी, देसमूलगुणपच्चक्खाणी वि, अपच्चक्खाणी वि' हे गौतम ! पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिका नो नैव सर्वमूलगुणपत्याख्यानिनः, अपितु देशमूलगुणप्रत्याख्यानिनोऽपि, अपत्याख्यानिनोऽपि भवन्ति, 'मणुरसा जहा जीवा' मनुष्याः यथा जीवाः सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानादि त्रयवन्तो भवन्ति, तथा मनुष्या अपि सर्वमूलगुण प्रत्याख्यानिनोऽपि, देशमूलगुण प्रत्याख्यानिनोऽपि, अप्रत्याख्यानिनोऽपि च भवन्ति । 'वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा नेरइया' अप्रत्याख्यानी होते हैं। अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं कि 'पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णे पुच्छा' हे भदन्त ! जो पंचेन्द्रियतिर्यच योनिके जीव हैं वे क्या सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी होते हैं या देशमूलगुणप्रत्याख्यानी होते हैं या अप्रत्याख्यानी होते हैं ? उत्तरमें प्रभु कहते हैं कि 'गोयमा' हे गौतम ! 'पंचिंदियतिरिक्खजोणिया' पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिके जीव 'णो सव्वमूलगुणपञ्चक्खाणी' सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी नहीं होते हैं, किन्तु वे 'देसमूलगुणपञ्चख्खाणी वि, अपञ्चक्खाणी वि' देशमूलगुणप्रत्याख्यानी भी होते हैं और अप्रत्याख्यानी भी होते हैं। 'मणुस्सा जहा जीवा' जैसे सामान्यजीव सर्व मूलगुणप्रत्याख्यानवाला, देशमूलगुणप्रत्याख्यानवाला और अप्रत्याख्यानवाला होता है, उसी प्रकारे से मनुष्य भी इन तीनों प्रत्याख्यानों वाला होता है । 'चाणमंतरजोइसियवेमाणिया A- 'पंचिंदिय तिरिक्खजोणिया णं पुच्छा?' wea! पयन्द्रिय તિર્યંચ છ શું સર્વમૂલગુણ પ્રત્યાખ્યાની હોય છે, દેશમૂલગુણ પ્રત્યાખ્યાની હોય છે, 3 मप्रत्याभ्यानी डाय छ ? उत्तर- 'गोयमा' हे गौतम! 'पचिंदियतिरिक्खजोणिया' पथन्द्रिय तिय" यानि ७! 'णो सचमूलगुणपचक्खाणी, देसमूलगुण पचक्खाणी वि, अपचक्खाणी पि' सर्वभूतन प्रत्याभ्यानी त नथी, परन्तु तेयो शिभूरारा प्रत्याभ्यानी 4ए डाय छ भने प्रत्याभ्यानी ५५ 3५ छ. 'मणुस्सा जहा जीवा' मनुध्या विष सामान्य रे ४थन सभा. मेले मनुष्य। પણ સામાન્ય જીવની જેમ સવમૂલગુણુપ્રત્યાખ્યાની પણ હોય છે, દેશમૂલગુણપ્રત્યાખ્યાની VA डाय छ भने प्रत्यायनी ५५५ डाय छे. 'वाणमंतर-जोइसिय-द्रेमाणिया શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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