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________________ ३९९ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ७ उ. २ सू. ३ प्रत्याख्यानस्वरूपनिरूपणम् सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानिनोऽपि भवन्ति देशमूलगुणप्रत्याख्यानिनोऽपि, अमत्याख्यानिनोऽपि च भवन्ति । गौतमः पृच्छति - 'नेरइया णं पुच्छा ?' नैरयिकाणां विषये पृच्छा = प्रश्नः तथा च नैरयिकाः किम् सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानिनः ? किंवा देशमूलगुणप्रत्याख्यानिनः ? अथवा अप्रत्याख्यानिनो भवन्ति ? भगवानाह - 'गोयमा ! नेरइया णो सन्वमूलगुणपच्चक्खाणी, णो देस मूलगुणपच्चक्खाणी, अपचखाणी' हे गौतम! नैरयिका नो नैव सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानिनः, नो नैव वा देश मूलगुणप्रत्याख्यानिनो भवन्ति, अपितु अप्रत्याख्यानिनो भवन्ति, 'एवं जाव - चउरिंदिया एवं नैरयिकवदेव यावत् पृथिवीकायिका दिपञ्च केन्द्रियाः, द्वीन्द्रियाः, त्रीन्द्रियाः, चतुरिन्द्रियाश्वापि न सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानिनः, न वा देशमूलगुणप्रत्याख्यानिनः, अपितु अप्रत्याख्यानिनो भवन्तीत्याशयः । मूलगुणपत्याख्यानी भी होते हैं, देशमूलगुणप्रत्याख्यानी भी होते हैं तथा अप्रत्याख्यानी भी होते हैं । 'नेरइयाणं पुच्छा' गौतमस्वामी प्रभुसे पूछ रहे हैं कि हे भदन्त ! नारकजोव क्या सर्वमूलगुणप्रत्याक्यानी होते हैं ? देशमूलगुणप्रत्याख्यानी होते हैं ? या अप्रत्याख्यानी होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं कि 'गोयमा' हे गौतम ! 'नेरइया णो सव्वमूलगुणपचखाणी णो देस मूलगुणपच्चक्खाणी, अपच्चखाणी' नारकजीव न सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी होते हैं, न देश मूलगुणप्रध्याख्यानी होते हैं किन्तु अप्रत्याख्यानी होते हैं । 'एवं जाव चउरिंदिया' इसी तरहसे पृथिवोकायिक आदि पांच एकेन्द्रियोंके विषय में, दो इन्द्रियोंके विषयमें, ते इन्द्रियजीवोंके विषय में और चौइन्द्रियजीवोंके विषय में जानना चाहिये अर्थात् वे न सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी होते हैं, न देशमूलगुणप्रत्याख्यानी होते हैं किन्तु 9 प्रश्न- 'नेरइयाणं पुच्छा' हे लहन्त ! नार को शु सर्वभूतगुण प्रत्याख्यानी હાય છે, દેશભૂલગુણ પ્રત્યાખ્યાની હાય છે, કે અપ્રત્યાખ્યાની હેય છે ? २ - 'गोयमा ! नेरइया णो सव्वमूलगुणपञ्चक्खाणी, णो देसमूलगुण पच्चक्खाणी, अपञ्चक्खाणी' हे गौतम! नार४ वा सर्वभूतगुण त्याच्यानी पशु હાતા નથી, દેશભૂલગુણુ પ્રત્યાખ્યાની પણ હાતા નથી, પરન્તુ અપ્રત્યાખ્યાની જ હાય છે. 'एवं जाव चउरिदिया' प्रमाणे पृथ्वी आदि पांच अारना भेन्द्रियेोर्भा દ્વીન્દ્રિયામાં, ત્રીન્દ્રિયામાં અને ચતુરિન્દ્રિય જીવેામાં સમજવું. એટલે કે એકેન્દ્રિયથી ચતુરિન્દ્રિય પન્તના વા નારકાની જેમ અપ્રત્યાખ્યાની જ હોય છે. તેઓ સ`મૂલગુણુ પ્રત્યાખ્યાની હાતા નથી અને દેશભૂલગુણ પ્રત્યાખ્યાની પણ હાતા નથી. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : પ
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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