SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 302
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - २८४ भगवतीसूत्रे निरिन्धनतया अकर्मणो गतिः प्रज्ञाप्यते ? गौतम ! तद्यथा नाम धूमस्य इन्धनविषमुक्तस्य ऊर्ध्वं विस्रसया नियाघातेन गतिः प्रवर्तते, एवं खलु गौतम ! निरिन्धनतया अकर्मणोगतिः प्रज्ञाप्यते। कथं खल भदन्त ! पूर्व प्रयोगेण अकर्मणो गतिः प्रज्ञप्यते ? एवं खलु गौतम ! तद्यथा नाम काण्डस्य (कहं णं भंते ! निरिंधणयाए अकम्मस्स गई ?) हे भदन्त ? कर्मरूप ईन्धनसे रहित होजानेसे अकर्मवाले जीवकी गति किस तरहसे कही गई है ? (गोयमा) हे गौतम ! (से जहानामए धूमस्स इंधणविप्पमुक्कस्स उड्ढे वीससाए निव्वाघाएणं गई पवत्तइ, एवं खलु गोयमा !) जैसे जलती हुइ अग्नि और ईधनके संयोग सेजन्य धूमकी गति विना किसी रुकावटके स्वभावतः ऊपरकी और होती है इसी प्रकारसे कर्मरूप ईधनसे मुक्त-रहित हुए जीवकी भी गति स्वभावसे उर्ध्व होती है । (कहं णें भंते ! पुवप्पओगेणं अकम्मस्स गई पण्णायइ) हे भदन्त ! पूर्वप्रयोगसे, कर्मरहित जीवकी गति किस प्रकार से कही गई है ? (गोयमा ! से जहानामए कंडस्स कोदंड विप्पमुक्कस्स लक्खाभिमुही निवाघाएणं गई पवत्तई) हे गौतम ! जिस प्रकार धनुषसे छूटे हुए बाणकी गति विना किसी रुकावटके अपने लक्ष्यकी ओर स्वभावतः होती है (एवं खलु गोयमा ! पुवप्पओगेणं अकम्मस्स गई पण्णायइ) इसी तरहसे हे गौतम ! पूर्वप्रयोगसे ४पाथी भरहित मनमा पनी पy मेवी ०८ गति थाय छे. (कह णं भंते ! निरिंधणयाए अकम्मस्स गई ?) B मह-त! ४भ ३५ ४.धनथी हित ५६ पाथी सभाप नी गति ही छ ? (गोयमा !) गीतम! (से जहानामए धूमस्स इंधणविष्पमुक्कस्स उडूढं वीससाए निव्वाघाए णं गई पवत्तइ, एवं खलु (गोयमा!) गौतम! पतित भनिन अने ४थन (anssi) ना सयोगथी पहा થયેલા ધુમાડાની ગતિ કોઈ પણ પ્રકારની રુકાવટ ન હોય તે સ્વાભાવિક રીતે જ ઉપરની દિશામાં હોય છે, એ જ પ્રમાણે કર્મરૂપ ધનથી મુકત (રહિત) થયેલા જીવની ગતિ सावि४ शत डाय छे. (कणं भंते ! पुचप्पओगेणं अकम्मस्स गई पण्णायइ) 3 HER! पूर्व प्रयोगथा भलित पनी गति की ही छ ? (गोयमा!) हे गौतम! (से जहा नामए कंडस्स कोदंडविप्पमुक्कस्स लक्खाभिमुही निव्बाघाएणं गई पचनइ) रेभ धनुषमाथी टेसा मानी गति पY Pी २१८ न डाय तो सामावि शते ४ पोताना लक्ष्यनी त२३नी साय छ, (एवं खलु गोयमा! શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy