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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ६ उ.१० स.२ जीवस्वरूपनिरूपणम् २१५ मंते! असुरकुमारे, अमुरकुमारे जीवे ? गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! जीवः खलु किम् असुरकुमारः ? असुरकुमारो वा एवं किं जीवः ? भगवानाह-'गोयमा ! असुरकुमारे ताव नियमा जीवः, जीवः पुण सिय असुरकुमारे, सिय णो अमुरकुमारे' हे गौतम ! असुरकुमारस्तावद् नियमाद् अवश्यमेव जीवः, जीवस्तु पुनःस्यात् कदाचिद् असुरकुमारो भवति, स्यात् कदाचित् न असुरकुमारः, कदाचिद् असुरकुमारभिन्नोऽपि भवतीत्यर्थः, ‘एवं दंडओ भाणियब्वो, प्राणों को-पाँच ५ इन्द्रिय तीन ३ बल और आयु तथा श्वासोच्छ्वास ये दश प्राण होते हैं-इनमें से अपने २ योग्य प्रोणों को जो धारण करता है वह जीव है. नारक जीव १० प्राणों को धारण करता है इसलिये वह जीव रूप है । अपने २ योग्य प्राणों से जीने वाला जो जीव है वह जब नरकप्रायोग्य कर्म का बंध करता है- तब वह नारकपर्याय पाता है और जब उसके नरकमायोग्य कर्म क बंध नहीं होता है तब वह नारकपर्याय वाला भी नहीं होता है । 'जीवे णं भंते ! असुरकुमारे असुरकुमारे जीवे?' गौतम प्रभुसे पूछ रहे हैं कि हे भदन्त ! जो असुरकुमार देव है वह जीव रूप है कि जीव असुरकुमार देवरूप है ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं कि-'गोयमा' हे गौतम ! 'असुरकुमारे ताव नियमा जीवे, जीवे पुण सिय असुरकुमारे, सिय णो असुरकुमारे' असुरकुमार जो देव है वह तो नियम से जीव रूप है पर जो जीव है वह असुरकुमार देव हो भी और नहीं भी हो, अन्य और असुरकुमार से भिन्न પ્રણેમાંના પિતે પિતાને યોગ્ય પ્રાણેને જે ધારણ કરે છે તેને જીવ કહે છે. પિત પિતાને ગ્ય પ્રાણેથી જીવનારો જે જીવ હોય છે, તે જ્યારે નારક પર્યાયને યોગ્ય કર્મને બંધ કરે છે, ત્યારે નારકપર્યાય પ્રાપ્ત કરે છે. પણ જ્યારે તે નારકપર્યાયને યોગ્ય કમનો બંધ કરતો નથી, ત્યારે તે નારક પર્યાયમાં ઉત્પન્ન થતો નથી. गौतम स्वामीन। प्रश्न- 'जीवेणं भंते ! असुरकुमारे असुरकुमारे जीवे ?' હે ભદન્તા જે અસુરકુમાર દેવ છે તે શું છવરૂપ હોય છે કે જીવ અસુરકુમાર દેવરૂપ હોય છે? उत्तर- 'गोयमा ! 8 गौतम ! 'अनुरकुमारे ताव नियता जीवे, जीवे पुण सिय असुरकुमारे, सिय णो असुरकुमारे ' मसुमार देवता नियमथी । જીવરૂપ હોય છે, પણ જે જીવ છે તે અસુરકુમાર દેવ હોય છે પણ ખરે અને ન પણ होय - अट असुरशुमार सिवायनी अन्य पर्याय३ पशु श छे. एवं શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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