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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ६ उ. ९ . ३ देवज्ञानाज्ञानस्वरूपनिरूपणम् १९५ लेइयो देवः उपयुक्तेन आत्मना जानाति, पश्यति । अन्ते - गौतम आह'सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति, तदे ! तदेवं भदन्त ! इति ॥ ३ ॥ इति श्री - जैनाचार्य - जैनधर्म दिवाकर - पूज्यश्रीघासीलाळव तिविरचितायां श्रीभगवती सूत्रस्य प्रमेयचन्द्रिकाख्यायां व्याख्यायां षष्ठशतकस्य नवमोद्देशकः समाप्तः ॥ ६-९ ॥ सम्यग्दृष्टिपना तथा उपयुक्तावस्था है । अन्त में प्रभु के कथन को स्वतः प्रमाणभूत मानते हुए गौतम प्रभु से कहते हैं कि भदन्त ! आपने जो यह सब कहा है वह सर्वथा सत्य ही है सर्वथा सत्य ही हैं | सू० ३ || जैनाचार्य श्री घासीलालजी महाराजकृत 'भगवतीसूत्र' की प्रमेयचन्द्रिका व्याख्याके छट्ठे शतकके नववा उद्देशक समाप्त ॥ ६-९ ॥ G 6 સ્વતઃ પ્રમાણભૂત માનીને ગૌતમ સ્વામી તેમને કહે છેसेवं भंते ! सेवं मंते ! चि ' ' हे लहन्त ! आपनां वयना सर्वथा सत्य ४ हे सर्वथासत्यन छे.' ॥ ३॥ જૈનાચાય* શ્રી ઘાસીલાલજી મહારાજકૃત ‘ભગવતી’ સૂત્રની પ્રમેયાદ્રિકા વ્યાખ્યાના છઠ્ઠા શતકના નવમા ઉદ્દેશ સમાપ્ત પ્રદલા શ્રી ભગવતી સૂત્ર : પ
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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