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________________ ११४ भगवतीसू बादरोऽनिकायः, बादरो वनस्पतिकायश्च, अन्यत् तदेव, विशेषोक्तादन्यद् भिन्नं सर्वे तथैव पूर्वोक्तमेव इत्यर्थलाभात् पूर्वं यस्य यस्य निषेधः कृतः, तस्य तस्य निषेधः अत्रापि विज्ञेयः । तथा विशेषोक्तादन्यत् सर्वे पूर्ववदेव अत्रापि बोध्यम् । तथानवग्रैवेयकादीषत्प्राग्भारान्तेषु पूर्वोक्त गेहादिकं स" स्पष्टतोऽनुक्तमपि निषेधतो ज्ञेयम् ! अथ पृथिव्यादयो ये यत्राध्येतव्यास्तान् संग्रहगाथया प्रदर्शयति- 'गाहा' - गाथा - "तमुकाए कप्पपणए, अगणी पुढवीय अगणि पुढवीसु । आऊ तेऊ वणस्सई कप्पु वरिमकण्ड राईसु " ॥१॥ तमस्काये पूर्वोक्ते तमस्कायप्रकरणे कल्पपञ्चके अत्रोक्ते सौधर्मेशान - सनत्कुमार- माहेन्द्र काय, बादर वनस्पतिकाय इनके संबंध में भी प्रश्न करना चाहिये वाका सब पूर्वोक्तरूपसे ही है, सो ऐसा जो कहा गया है उससे यह जाना जा सकता है कि पहिले जिस जिसका निषेध किया गया है, उस उसका निषेध यहां पर भी जानना चाहिये तथा जो विशेष बात यहां पर कही गई है उसके सिवाय और सब बातें पूर्वकी तरह से ही यहाँ पर भी जाननी चाहिये । तथा नवग्रैवेयक से लेकर ईषत्प्रागभारा पृथिवीत्क में पूर्वोक्त गेहादिक का निषेध कहकर नहीं किया है, तो भी उन सबका यहां निषेध किया ही गया है ऐसा समझना चाहिये । अब सूत्रकार इस संग्रहगाथा द्वारा यह प्रकट करते हैं कि पृथिवी आदि पदार्थों का सद्भाव कहांर पर है 'तमुकाए कप्पपणए, इत्यादि पूर्वोक्त तमस्काय के प्रकरण में, कल्पपञ्चकमें सौधर्म ईशान सनत्कुमार माहेन्द्र और ब्रह्मलोक इन पांच तथा 'पुच्छयन्त्रय वायरे आउकाए, बायरे अगणिकाए, बायरे वणस्सइकाए अनंतं चेत्र' मार अयूहाय, माहर अग्निहाय भने माहर वनस्पतिडायना संबंधभां પ્રશ્ન કરવા જોઇએ, બાકીનું સમસ્ત કથન પૂક્ત રૂપે જ સમજવું. એટલે કે પહેલાં જેને જેને નિષેધ કરાયેા છે, તેને અહીં પણ નિષેધ સમજવા, તથા જે વિશેષતાને અહીં ઉલ્લેખ કરવામાં આવ્યા છે તે સિવાયનું કથન તે પૂર્વાંકત કથન અનુસાર જ સમજવું. જો કે નવત્રૈવેયકથી લઈને ઋષપ્રાગ્ભારા પૃથ્વી પન્તના સ્થાનેામાં ગૃહાર્દિકનો નિષેધ કરવાના પત્રકારે ઉલ્લેખ કર્યો નથી, તે પણ એ બધાંના નવદ્મવેયકાદિમાં નિષેધ જ સમજવા, નીચેની ગાથા દ્વારા સુત્રકાર એ વાત પ્રકટ કરે છે કે પૃથ્વીકાય આફ્રિકાના सहभाव यां यां छ- 'तमुकाए कप्पपणए, प्रत्याहि पूर्वोति तमसायना अशुभां तथा उपययम्भां (सौधर्म, प्रशान, सनत्कुमार, महेन्द्र भने ब्रह्मसोङ, मा याय શ્રી ભગવતી સૂત્ર : પ
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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