________________
ममेवचन्द्रिका टीका स.६ उ.७ सू.४ सुषममुषमाधरकनिरूपणम् ८७ भारतमदेश इत्ययः एवंरीत्या भारतस्य भूमिसमतायाः, भूमिभागगततृणमणीनां वर्णपञ्चकस्य, सुरभिगन्धस्य, कोमल स्पर्शस्य, शुभशब्दस्य, वाप्या दीनाम्, वाप्याउनुगतोत्पातपर्वतादीनाम्, उत्पातपर्वताधाश्रितानां इंसाऽऽसना दीनाम्, लतागृहादीनाम्, शिलापटकादीनांच वर्णना वक्तव्या, ताशवर्णनान्ते च जीवाभिगमे एवं दृश्यते-'तत्थणं बहवे भारया मणुस्सा मणुस्सीओय आसयंति, सयंति चिट्ठति, निसीयंति, तुयठंति' इत्यादि, तत्र खलु बहवः भारताः मनुष्याः मानुष्य च आसीदन्ति, शेरते, तिष्ठन्ति, निषीदन्ति, त्रुटयन्ति, इत्यभिप्रायेणेवाह-'जाव आसयन्ति, सयंति, यावत्-आसीदन्ति, शेरते। यावत्पदसंग्राह्याणि जैमा एकसा रहता है इसी वर्णनके अनुसार भरतक्षेत्रका भूभाग भी प्रथमकाल सुषमसुषमाके समयमें ऐसा ही रहता है भूमिभागमें रहे हुए तृण और मणि ये सब पांच वर्णवाले होते हैं, गंध सुगंधित होती है, स्पर्श कोमल होता है, शब्द सुहावने होते हैं, वापिका
आदिमें अनुगत उत्पात पर्वत आदि होते हैं, उत्पात पर्वतादिकोंके भाश्रित हंसासन आदि होते हैं, लतागृह आदि होते हैं, शिलापट्टक भादि होते हैं सेो इन सब बातों का वर्णन भी यहाँ भारतक्षेत्रकी भूमिमें करलेना चाहिये । क्योंकि ऐसा ही वर्णन जीवाभिगम सूत्र में किया गया है । इसवर्णनके अन्तमें जीवाभिगमसूत्रमें फिर ऐसा पाठ भाया हुआ है 'तत्य णं वहवे भारया मणुस्सा मणुम्सीओ य आसपंति, सयंति, चिटुंति, निसीयंति, तुयति' इसी अभिप्रायको लेकर यहां पर भी सूत्रमें 'जाव आसयंति, सयंति' ऐसा पाठ कहा गया है। यहां यावत् शब्दसे जिन पदोंका संग्रह हुआ है वे पद सष ભરતક્ષેત્રને ભૂમિભાગ પણ પ્રથમ કાળ સુષમસુષમાના સમયમાં એ જ રહે છે. ભૂમિભાગમાં રહેલાં તૃણુ અને મણિ પાંચ વર્ણવાળા હોય છે, ગંધ સુગંધી જ હોય છે. સ્પર્શ કેમળ હોય છે, શબ્દ મધુર હોય છે, વાપિકા આદિ હોય છે, વાપિકા આદિમાં અનુગત ઉત્પાત પર્વત આદિ હોય છે, ઉત્પાત પર્વતાહિકમાં આશ્રિત હંસ આદિ હોય છે, લતાગૃહ આદિ હોય છે, શિલાપટ્ટક આદિ હોય છે. તે એ બધી વસ્તુઓ ભારતવર્ષમાં પણ હોય છે એમ સમજવું. આ વર્ણનના અન્તભાગે જીવાભિગમ સત્રમાં मा प्रधान सूत्रामाया छ- 'तत्थ णं बहवे भारया मणुस्सा मणुस्सीओय आसयंति, सयंति, चिट्ठति, निसीयंति, तुयटुंति' पातने अनुमान मह पर 'जाव आसयंति. सयंति' मेवो पा माध्य. ही 'यायत ५४था २ पहानी सब यो छ, त समस्त प: ५२ भावाम मा छे.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫