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________________ - भगवतीने अत एव रमणीयः भूमिभागः भूमदेशः आसीत्, तदेव दर्शयति-'से जहा नाम आलिंगपुक्खरे इवा०' तघया नाम आलिशपुष्कर इतिवा, आलिङ्गस्यसमतलमुखवाधविशेषस्य पुष्करोमुखपुटः इति समतलः कोमलोवा भवति, तथैव भारतभूभागः समतलाकारः कामलभेत्यर्थः, ' एवं उत्तरकुश्वतन्वया नेयचा' एवं तथा चात्र उत्तरकुरुबक्तव्यता ज्ञातव्या, नीवाऽभिगमोक्तोचरकुर बक्तव्यतानुसारं भारतस्य वक्तव्यता स्वयमूहनीया इत्याशयः, नीवाभिगमोक्ता उत्सर कुरुवक्तव्यता चेयम्- मुइंगपुक्खरेइवा, सरतलेइचा, करतले इवा' मृदङ्गपुष्करः मृदङ्गस्य वाद्यविशेषस्य पुष्करः अग्रभागपुटः इति वा मृदङ्गमुम पुटाकार सदृशः समतलो भारतभूभागः आसीत्, एवं सरस्तलम्, इति चा, सरसा-सरोवरस्य तलपदेशवत् समा भारतभूमदेशः, अथवा करतलवत् समो बाला था विषमता ऊँची नीची अवस्था बाला नहीं था, इसीसे वह रमणीय था इसी बातको सूत्रकार 'से नहा नामए आलिंगपुक्चरेइ बा' इस सूत्र पाठ द्वारा प्रकट करते हैं जैसे समतल मुखवाले बाथ विशेषका तबलाका मुखपुट समतल होता है उसी प्रकारसे भरतक्षेत्रका भूभाग समतल आकारवाला और कोमल था। 'एवं उत्तरकुरुवत्तव्यया नेयव्या' जीवाभिगमसूत्र में जैसी उत्तरकुरुकी वक्तव्यता कही गई है उसीके अनुसार यहांपर भरतक्षेत्रकी वक्तव्यता जाननी चाहिये। जीवाभिगमसूत्र में उत्तरकुरुकी वक्तव्यता इस प्रकारसे है 'मुइंगपुक्खरेइ वा सरतलेइ वा, करतलेइवा' उत्तरकुरुक्षेत्रमें सदा प्रथमकाल सुषमसुषमा रहता है इस कारण वहांको भूमिभाग तबलाकेमुखके जैसा समतल होता है' तालाब के तलके समान सम एकसा रहता है, तथा हथेली के २मणीय ता, 2 वातन सूत्रा२ मा सूत्रा द्वारा १४८ ७३ छ-' से जहा नामए आलिंगपुक्खरेइ वा' । समतल भने म तमसान भुमट साप छ, मेवा ४ समतल मन मा भरतक्षेत्रको भूमिका तो. 'एवं उत्तरकरवत्तव्वया णेयब्वा' पालिराम सूत्रमा रुक्षेत्रनु र वन , मेर ભરતક્ષેત્રનું પણ વર્ણન સમજવું. पालिम सूत्रमा उत्तरुनु मा प्रमाणे न यु - मुइंगपुरखरे इवा सरतलेइ वा करतलेई वा, हत्तर सत्रमा सह प्रथम (भुपमपमा રહે છે. તેથી ત્યાં ભૂમિભાગ તબલાના મુખ જે સમતલ હોય છે, સરોવરના તળિયા, જે સમતલ હોય છે અને હથેલીના જે એક સરખે હોય છે. આ વાન પ્રમાણે શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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