________________
८७२
भगवतीसूत्रे 'दस देवाः जाव' दश देवाः यावत्-'विहरंति' विहरन्ति यावत्करणात् 'आधिपत्यं पौरपत्यादिक कुर्वन्तः' इति संग्राह्यम् । तानेवाह' तं जहा' तद्यथा-'सक्के देविंदे' शक्रो देवेन्द्रः । देवराया' देवराजः सौधर्मकल्पनामदक्षिणार्द्धदेवलोकाधिपतिः तल्लोकपालाश्च इमे बोध्याः-'सोमे, जमे, वरुणे, वेसमणे' सोमः १, यमः २. वरुणः ३, वैश्रवणश्च ४, अथौ दीच्यार्धदेवलोकाधिपतिमाह 'ईसा णे१ देविंदे देवराया' ईशानो देवेन्द्रो देवराजः, तल्लोकपालाश्च पूर्वोक्ता एवेत्याह-'सोमे, जमे; वरुणे; वेसमणे' सोमः २, यमः ३, वरुणः ४, वैश्रवणश्चेति । 'एसा वत्तव्यया' एषा सौधर्मशानयोरुक्ता वक्तव्यता 'सव्वेसु वि कप्पेसु' सर्वेष्वपि सनत्कुमारादि-अच्युहै ? यहां यावत्पद से पूर्वोक्त पौरपत्य आदि पदोंका ग्रहण हुआ है । इसका उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते है- 'गोयमा' हे गौतम ! 'दस देवा जाव विहरंति' दश देव आधिपत्य यावत् करते है । यहां पर भी यावत् पद से पौरपत्य आदि पद गृहीत हुए हैं । 'तं जहा' इसी बातको अब नामदिशेष पूर्वक प्रकट किया जाता है'सक्के देविंदे देवराया, सोमे, जमे, वरुणे, वेसमणे' सौधर्मकल्प में रहनेवाले देवोंके ऊपर आधिपत्य आदि करनेवाला देवेन्द्र देवराज शक्र है और इसके चार लोकपाल है-सोम, यम, वरुण, वैश्रमण यह देवेन्द्र देवराज शक्र सौधर्मकल्प नामके दक्षिणार्ध देवलोक का अधिपति है । उदीच्या देवलोक का अधिपति देवेन्द्र देवराज ईशान है, इसके भी ये ही सोम, यम, वरुण और वैश्रमण चार लोकपाल है । ' एसा वत्तव्वया' सौधर्म और ईशानकल्पमें कही गई यह वक्तव्यता अवशिष्ट समस्त कल्पों में सनत्कुमार
उत्तर- 'गोयमा ! 3 गौतम! 'दस देवा जाब विहरंति' तमना ५२ इस वोर्नु माधिपत्य माहि जाय छे. 'तंजहा' ते सवाना नाम नीय प्रमाणे छ सक्के देविदे देवराया, सोमे, यमे, वरुणे, वेसमणे' सोयम ४६५ निवासी દેવો ઉપર દેવેન્દ્ર દેવરાજ શક્રનું તથા તેના ચાર લોકપાલોનું સિમ, યમ, વરુણ અને વૈશ્રમણનું) અધિપતિત્વ છે. દેવેન્દ્ર દેવરાજ શક દક્ષિણાર્ધ દેવલોકના અધિપતિ છે. ઉત્તરાર્ધ દેવલોકના અધિપતિ દેવેન્દ્ર, દેવરાજ ઈશાન છે. તે ઈશાનેન્દ્રના ચાર લોકપાલોનું नाम ! सोम, यम, १२९४ मने श्रमाय छे. 'सा वत्तव्वया' सौधर्म भने ઈશાન કલપના દેવોને ઈ [અધિપતિના વિષયનું આ કથન સનસ્કુમારથી અમ્યુત
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩