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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३ उ.७ २.४ वरुणनामलोकपालस्वरूपनिरूपणम् ८२१ त्वम्, शक्रस्य खलु (यावत्) वरुणस्य महाराजस्य यावत्-तिष्ठन्ति, तद्यथावरुणकायिका इति वा, वरुणदेवता कायिका इति वा, नागकुमारा, नागकुमार्यः, उदधिकुमाराः, उदधिकुमार्यः, स्तनितकुमाराः, स्तनितकुमार्यः, ये चाप्यन्ये तथाप्रकाराः, सर्वे ते तद्भक्तिकाः यावत्-तिष्ठन्ति, जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य दक्षिणेन यानि इमानि समुत्पधन्ते, तद्यथा-अतिवर्षा इति राजधानी आदि का भी (जाव पासायवडे सया भाणियव्वा) कथन यावत् प्रासादावतंसक के कथन तक जानना चाहिये । (नवरं) उस कथनमें और इस कथनमें जो अन्तर है वह इस प्रकारसे है कि (नाम नाणत्तं) यहां नाममें अन्तर (भेद).है । (सक्कस्स णं जाव वरुणस्स महारण्णो जाव चिटुंति) देवेन्द्र देवराज शक्रके वरुण महाराजकी आज्ञा में यावत् ये देव रहते है (तं जहा) उनके नाम इस प्रकार से हैं (वरुणकाइया इवा, वरुणदेवकाइया इ वा, नागकुमारा, नागकुमारीओ, उदहि कुमारा, उदहिकुमारीओ, थणियकुमारा, थणियकुमारीओ) वरुणकायिक, वरुणदेव कायिक, नागकुमार, नागकुमारियां, उदधि कुमार, उदधिकुमारियां, स्तनितकुमार, स्तनितकुमारियां, (जे यावण्णे तहप्पगारा सवे ते तन्भत्तिया जाव चिट्ठति) तथा इसी प्रकार के जो और भी दूसरे देव हैं वे सब उसकी भक्तिवाले होकर यावत् आज्ञा में सदा रहते हैं। (जंबूद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं) जंबुद्धीप नाम के इस द्वीपमें मंदपर्वत की दक्षिण दिशामे (जाइं सम४ (जाव पासायवडेंसया भाणियब्वा) प्रासावित सना ४थन ५-तनुं यन मही अड ४२. (नवरं नाम नाणत्तं)ते मन्ने ४थनमा तनामन।। ३२३१२:४२वी. (सक्कस्स णं जाव वरुणस्स महारण्णो जावचिति)देवेन्द्र, ३१२१०८ नाalon alsपास १२४नी माज्ञामा २डेना। वो नीचे प्रमाणे छ-(तंजहा) तेमनानाभा नाय प्रभारी छे- (वरुणकाइया इ वा, वरुणदेवकाइया इवा, नागकुमारा, नागकुमारीओ, उदहिकुमारा, उदहिकुमारीओ, थणियकुमारा, थणियकुमारीओ) १२९॥यि४, વરુણદેવકાયિક, નાગકુમાર, નાગકુમારીઓ, ઉદધિકુમાર, ઉદધિકુમારીએ, સ્વનિતકુમાર स्तनितमारीमा, (जे यावण्णे तहप्पगारा सवे ते तब्भत्तिया जाव चिट्ठति) તથા એ પ્રકારના બીજાં પણ જે દેવ હોય છે, તેઓ તેમની ભકિતવાળા હોય છે मने माज्ञानि पासन ४२ना। डाय छे. जवृद्दीवे हीवे मंदरस्स पव्ययस्स दाहिणे णं) भूदी५ नामना द्वीपमा म४२ पतनी दक्षिण दिशाम ( जाइं इमाई શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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