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भगवतीसूत्रे वा, मन्दवर्षा इति वा, सुदृष्टिः इति वा, दुष्टिः इति वा, उदकभेदा इति दा; उदवाहा इति वा, अपवाहा इति वा, प्रवाहा इति वा, ग्रामवाहा इति वा, यावत्-सभिवेशवाहा इति वा, माणक्षयाः, यावत्-तेषां वा वरुणकायिकानां देवानाम्. शक्रस्य देवेन्द्रस्य, देवराजस्य वरुणस्य महाराजस्य यावत्-यथाऽपत्याऽभिजाता अभवन , तद्यथा-कर्कोटकः, कर्दमकः, अञ्जनः, शङ्खपालकः, पुण्ड्रः, पलाशः; मोदः, जयः, दधिमुखः, अयंपुलः, कातरिकः, शक्रस्य देवेइमाइं) जो ये उत्पात रूप कार्य (समुप्पजति) उत्पन्न होते है (तं जहा) जैसे-(अइवासा इ वा ) अतिवर्षा, (मंदवासा इवा) मंदवर्षा, (सुखुट्ठी इ वा) सुवृष्टि, (दुबुट्ठी इ वा) दुर्वृष्टि, (उदभेदा इ वा) उदक मेद (उदप्पीला इ वा) उदकोत्पोडा (उव्वाहा इ वा) अपवाह-अल्पप्रवाह (पव्यहाइ वा) प्रवाह (गामवाहाइ वा) ग्रामवाह (जाव संनिवेसवाहाइ वा) यावत् सन्निवेशवाह (पाणक्खया जाव) प्राणक्षय-ये सब वरुण महाराज से यावत् (तेसिं वा वरुणकाइयाणं देवाणं) वरुणकायिक देवों से अज्ञात नहीं है । (सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो वरुणस्स महारण्णो जाव अहावच्चाऽभिण्णाया होत्था) देवेन्द्र देवराज शक्रके तृतीय लोकपाल वरुण महाराजको ये देव अपत्यके जैसे अभिमत हैं। (तं जहा) वे देव ये है-(कक्कोडए, कदमए, अंजणे, संखवालए, पुंडे, पलासे, मोए, जए, दहिमुहे, अयंपुले, कायरिए) कर्कोटक, कर्दमक, समुप्पज्जति ) नाये ६०या प्रभारीना रे उपद्रव थाय छ ते १२५ माथी मज्ञात नथी- ( तंजहा) ते उपद्रवानां नाम नीय प्रमाणे -- ( अइ वासाइ वा, मंदवासाइ वा ) अतिवर्षा, महर्षा, ( सुवुट्ठीइ वा दुवुट्टीई वा ) सुवृष्टि, वृष्टि ( उदभेदाइ वा ) 363 , (उदप्पीलाइ वा) Sोपी31, (उव्वाहाइ वा) भवा-२०६५वाड, (पव्यहाइ वा) al, (गामवाहाइ वा) ग्रामवाडया (जाव संनिवेसवाहाइ वा) ने सनिवेश ५ तना वाड (जरेसमा ता ४) (पाणक्खया जाव) प्राक्षय मा त्यात १०६५ माथी अज्ञात नथी. ( तेसि वा वरुणकाइयाणं देवाणं) मने १२५४ायि: हेयी ५ ज्ञात नथा. (सक्कस्स णं देविंदस्स देवरणो वरुणस्स महारण्णो जाव अहावच्चाऽभिण्णाया होत्था) हेवेन्द्र, देवराय शना all १२नारे पुत्रस्थानीय हे। याय छ, (जहा) तेभना नाम नीय प्रमाणे छे-(कक्कोडए, कद्दमए, अंजणे, संखवालए, पुंडे, पलासे, मोए, जए, दहिमुहे, अयंपुले, कायरिए ) 28, भ४,
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩