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भगवतीमत्र मारी इति वा, निगममारी इति वा, खेटमारी इति वा, कर्वटमारी इति वा, मडम्बमारी इति वा, द्रोणमुखमारी इति वा, पट्टनमारी इति वा, आश्रममारी इति वा, संबाधमारी इति वा, सनिवेशमारी इति वा, प्राणक्षयाः, जनक्षयाः, धनक्षयाः, कुलक्षयाः, व्यसनभूताः, अनार्याः, ये चापि अन्ये तथाप्रकारा न ते शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य यमस्य महाराजस्य अज्ञाताः५ तेषांचा यमकायिकानां देवानाम् , शक्रस्य देवेन्द्रस्य, देवराजस्य यमस्य महाराजस्य इमे देवा यथाऽपत्या अभिज्ञाता अभवन् , तद्यथा-अम्बः,१ यमूलाइ वा, जाणिसूलाइ वा, पाससूलाइ वा, कुच्छिमूलाइ वा, गाममारोइ वा, आकरमारीइ वा नगरमारीइ वा, निगममारीइ वा, खेडमारीइ वा, कव्वडमारीइ वा, दोणमुहमारीइ वा, मस्तकशुल, योनिशूल, पाचशूल, कक्षाशूल, ग्राम-मारी-हैजा, नगरमारी, निगममारी; खेटमारी, कर्वटमारी, द्रोणमुखमारी, (मडम्बमारीइ वा, पट्टणमारीइ वा, आसममारीइ वा, संवाहमारीइ वा, सण्णिवेसमारीइ वा) मडम्बमारी, पत्तनमारी, आश्रममारी, संबाधमारी, सन्निवेशमारी (पाणक्खया, जणक्खया, धणक्खया, कुलक्खया, वसणभूया, अणारिया) प्राणक्षय, जनक्षय, धनक्षय, कुलक्षय, व्यसनभूत, अनार्य-पापरूप (जे यावि अन्ने तहप्पगारा ण ते सक्कस्स देविंदस्स देवरणो जमस्स महारणों अण्णाया) इसी प्रकारके और भी दसरे अनेक उपद्रव देवेन्द्र देवराज शक्रके लोकपाल यम महाराजके द्वारा अविज्ञात नहीं हैं, (तेसिं वा जमकाइयाणं देवाणं) और उन यमकायिक देवों द्वारा अज्ञात नहीं हैं । (सकस्स देविंदस्स देवरणो जमस्स महारपणो इमे देवा अहावच्चा, अभिण्णाया होत्था) देवेन्द्र देवआकरमारोइ वा नगरमारीइ वा, निगममारीइ वा खेडमारीइ वा, कब्बड मारीइ वा, दाणमुहमारीइ वा) भरत शून, यानिश, पाव शुस, क्षाशुस, श्रामभारी [२॥ नवा शाया।] नगरभारी,मेटभारी, ४५भारी, नोभुममा, (मडम्बमारीइ वा, पट्टणमारीइ वा, आसममारीइ वा, संवाहमारीइ वा. सण्णिवेसमारीइवा)म-मारी, पत्तनभारी, माश्रममारी, समाधमारी, सन्निवेशमारी, (पाणक्खया, जणक्खया, धणक्खया, कुलक्खया, वसणब्भूया, अणारिया) प्राणुक्षय, क्षय, धनक्षय, क्षय, व्यसन भूत मनाय-५५३५ (जे यावि अन्ने तहप्पगारा ण ते सकस्स देविंदस्स देवरणो जमस्स महारण्णो अण्णाया) उपद्रवान i मी ५४२ पदको थाय ते हेवेन्द्र, हवराय शना alsule यसमाथी सलए डाता नथी. (तेसि वा जमकाइयाणं देवाणं ) भने ते पात। या िवोथी ५५५ मत हाता नथी. (सकस्स देविंदस्स देवरण्णो जमस्स महारणो इमे देवा अहावच्चा,
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩