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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३ उ.७ सू.३ यमनामकलोकपालस्वरूपनिरूपणम् ८०१ रोगा इति वा, शीर्षवेदना इति वा, अक्षिवेदना इति वा, कर्णवेदना इति नखवेदना इति वा, दन्तवेदना इति वा. इन्द्रग्रहा इति वा, स्कन्दग्रहा इति वा, कुमारग्रहा इति वा, यक्षग्रहा इति वा, भूतग्रहा इति वा, एकाहिका इति वा द्वयहिका इति वा, व्यहिका इति वा, चतुरहिका इति वा, उद्वेजका इति वा, कासा इति वा, श्वासा इति वा ज्वरा इति वा, दाहा इति वा, कक्षाकोथा इति वा, अजीर्णकाः पाण्डुरोगाः, अर्शी सि इति वा, भगन्दरा इति वा, हृदयशूलानि इति वा, मस्तकशूलानि इति वा, योनिशूलानि इति वा, पार्श्वशूलानि इति वा कुक्षिशूलानि इति वा, ग्राममारी इति चा, आकरमारी इति वा, नगरसीसवेयणाइ वा, अच्छिवेयणाइ वा कण्णवेयणाइ वा, नहवेयणाइ वा, दंतवेयणाइ वा) इसी तरह महापुरुषों का मरण, महारुधिरका निकलना दुभूत, कुलरोग, ग्रामरोग, मंडलरोग, नगररोग, शिरदर्द आखोंकी पीडा कानकी पीडा, नखोंकी वेदना, दांतोंका दुखना(इंदग्गहाइ वा, खंदग्गहाइ वा, कुमारग्गहाइ वा, जक्खग्गहाइ वा, भूयग्गहाइ वा, एगाहियाइ वा, बेयाहियाइ वा तेयाहियाइ वा, चाउत्थहियाइ वा, उव्वेयगाइ वा, कासाइ वा, सासाइ वा, जराइ वा, दाहाइ वा, कच्छकोहाइ वा, अजीरया, पंडुरोगा, हरिसाइ वा भगंदराइ वा) इन्द्रग्रह, स्कन्दग्रह, कुमारग्रह यक्षग्रह, भूतग्रह, एकान्तरज्वर, तिजवारी, तीनदिनको छोडकर आनेवाला ज्वर, चारदिन के बाद आनेवालाज्वर, उद्वेग, खांसी, श्वास, ज्वर, दाह, शरीर के अमुकभागों का सडना, अजीर्ण, पांडुरोग, बबासीर, भगंदर (हिययसूलाइ वा) हृदयशूल (मत्थनगररोगाइ वा, सीसवेयणाइ वा, अच्छि वेयणाइवा, कण्णवेयणाइ वा, नहवेयणाइवा दंतवेयणाहवा) महा पुरुषांना भरण, महा २४तात, निक्ष, ण, मो, भ७० ।, नगर शा, शि२६, नेत्र, ४ पी1, नमनी पी31, iतर्नु, (इंदग्गहाइ वा, खंदग्गहाइ वा, कुमारग्गहाइवा, जक्खग्गहाड वा, भूयग्गहाइ वा, एग्गहियाइ वा, वेयाहियाइ वा, तेयाहियाइ वा, चाउत्थहियाइ वा, उव्वेयगाइ वा, कासाइ वा, सासाइ वा, जराइ वा, दाहाइ वा, कच्छकोहाइ वा, अजीरया, पंडुरोगा, हरिसाइ वा, भगंदराइ वा) छन्द्र प्रह, २०६ 26, शुभारड, ચક્ષગ્રહ, ભૂતગ્રહ, એકાંતરિયે તાવ, ત્રણ દિનને આંતરે આવતે જવર, ચાર દિનને मांतरे मापत ४१२, वेग, मांसी, श्वास, १२, हाड, शरीना मगाने। सी, मल, पांडुरोग, ७२स, मह२ (हिययमूलाइ वा) यश-४ध्य ।, (मत्थय मूलाइ बा, जोणिसूलाइ वा, पास सूलाइ चा, कुच्छिमूलाइ वा, गाममारीइ वा, શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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