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________________ ८०० भगवतीसूत्रे शक्रस्य देवेन्द्रस्य, देवराजस्य यमस्य महाराजस्य आज्ञायां यावत्-तिष्ठन्ति, जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य दक्षिणे यानि इमानि समुस्पधन्ते तद्यथाडिम्बा इति वा, डमरा इति वा, कलहा इति वा, बोला इति वा, क्षारा इति वा, महायुद्धानि इति वा, महासंग्रामा इति वा, महाशस्त्रनिपतनानि इति वा एवं महापुरुषनिपतनानि इति वा, महारुधिरनिपतनानि इति वा, दुर्भूता इति वा, कुलरोगा इति वा, ग्रामरोगा इति वा, मण्डलरोगा इति वा, नगरअसुरकुमारियां कंदर्प, नरकपाल, आभियोग (जे यावण्णे तहप्पगारा सव्वे ते तभत्तिगा, तप्पक्खिया, तभारिया) तथा और भी इसी प्रकारके समस्त देव उसकी भक्तिवाले, उसके पक्षमें रहनेवाले और उसके वशमें रहनेवाले हैं । (सक्कस्स देविदस्स देवरण्णो जमस्स महारणो) देवेन्द्र देवराज शक्रके लोकपाल यममहाराजकी (आणाएजाव चिटुंति) आज्ञामें यावत् ये सब देव रहते हैं। (जंबूद्दीवे मंदरस्सपव्वयस्स दाहिणेणं जाई इमाइ समुप्पज्जति) जंबूढीप नामके द्रोपमें मंदरपर्वतकी दक्षिणदिशाकी ओर जो ये उत्पात होते हैं (तंजहा) जैसे कि (डिवाइ वा , डमराइ बा. कलहाइ वा, बोलाइ वा, खाराइ वा, महाजुद्धाइ वा, महासंगामाइ वा महासत्थनिवडाइ वा) डिंप, डमर, कलह, बोल, खार, महायुद्ध, महासंग्राम, महाशस्त्रनिपतन, (एवं महापुरिसनिवडणाइ वा, महारुहिनिवडणाइ वा, दुब्भूयाइ वा, कुलरोगाइ वा, गामरोगाइ वा, मंडलरोगाइ वा, नगररोगाइ वा, त१४ाथिइ, मसुरभारी, असुरशुभारीमा, ५, न२४५८, माभियोग, (जे यावणे तहप्पगारा सव्वे ते तब्भनिगा, तप्पक्खिया, तब्भारिया) तथा से प्रा२ना भी પણ ઘણુ દેવો તેમની ભકિતવાળા, તેમને પક્ષ કરનારા, અને તેમને અધીન રહેનારા डाय छे. ( सकस्स देविंदस्स देवरण्णो जमस्स महारण्णा) ते सजावो, हेवेन्द्र देवरा० शनापास यम महारानी (अण्णाए जाव चिति) माज्ञा माहिमा २९ छे. (जंबूद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्ययस्स दाहिणणं जाई इमाई समुप्पज्जति तं जहा) भूद्वीप नामना द्वीपमा, भेर पतनी दक्षिणे नाये ६व्या प्रमाणुना જે ઉત્પાત થાય છે, તે યમ મહારાજથી અજ્ઞાત નથી. તે ઉત્પાતો નીચે પ્રમાણે છે(डिवाइ वा, डमराइ वा, कलहाइ वा, बोलाइ वा, खाराइ वा, महाजुद्धाइ वा, महासंगामाइ वा, महासत्थ निवडणाइ वा) (31, २, ४, मास, मार, भायुद्ध, महासाभ, माशर नियतन, (एवं महापुरिसनिवउणाइ वा; महारुहिरनिवउणाइ वा, दुभूयाइ वा, कुलरोगाइ वा, गामरोगाइ वा, मंडलरोगाइ वा, શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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