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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श. ३ उ.५ सू. १ त्रिकुर्वणाविशेष वक्तव्यतानिरूपणम् ६९१ 1 खलु अयमेतद्रूपो विषयः, विषयमात्रमुक्तम्, नो चैव संपत्या व्यकुर्वद् वा, विकुर्वति वा विकुर्विष्यति वा' इत्यन्तं भगवतः समाधानश्च विज्ञेयम् । गौतमः पुनः पृच्छति' से जहानामए' इत्यादि । हे भदन्त ! तद्यथा नाम 'केइपुरि से ' कोsपि पुरुषः 'एगओ जण्णोवइअ' एकतो यज्ञोपवीतम् एकपाववलम्बि यज्ञोपवीतं 'काउ' कृत्वा 'गच्छेजा' गच्छेत् 'एवामेव' एवमेव तथैव 'अणगारेणं भावियप्पा' अनगारः खलु भावितात्मा "' एगओजण्णोवइअकिञ्चगएणं एकतोयज्ञोपवीतकृत्यगंतेन एकपार्श्वस्थितयज्ञोपवीतधारिपुरुषाकारेण 'अप्पाणेणं' आत्मना स्व स्वरूपेण 'उड्ढ ' ऊर्ध्वम् ' वेहासं' विहायसि आकाशे इस प्रकारका यह विषय केवल विषय केवल विषयमात्ररूप से ही कहा गया है । क्यों कि आजतक उस भावितात्मा अनगारने इस प्रकारके इन पूर्वोक्त विकुन्ति समस्तरूपों से न समस्त जंबूद्वीप को भरनेका काम किया है न वर्तमान करता है, और न आगे भी वह ऐसा काम करेगाही यही बात 'नो चैव संपत्या व्याकुर्वद् वा, विकुर्वति वा, विकुर्विष्यति वा' इन भूतकालिक, वर्तमान कालिक एवं भविष्यत्कालिक क्रियापदों द्वारा प्रकट की गइ है। ऐसा जानना चाहिये | अब गौतम प्रभु से पुनः प्रश्न करते हैं कि हे भदन्त ! 'जहा नामए' जैसे 'केई पुरिसे' कोइ पुरुष 'एगओ जण्णोवइयं' एक कंधे पर जनेऊ 'काउं' लटकाकर 'गच्छेजा' चलता है, 'एवामेव' इसी तरह से 'भावियप्पा' भावितात्मा 'अणगारे णं' अनगार 'एगओ जण्णोवइय किञ्चगएणं' एक कंधे पर जनेऊ लटकाये हुए पुरुष के जैसा अपना आकार वैक्रियशक्तिद्वारा बनाकर 'उड्ढ वेहास' ऊँचे आकाश में 'उपज्जा' उड सकता है ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं પરતુ હે ગૌતમ ! એવી વિકુણા આજ પન્ત કદી પણ તેણે કરી નથી, વર્તમાન કાળે પણ એવી વિકુણા તે કદી કરતા નથી અને ભવિષ્યમાં પણ કરશે નહીં. તેની વિષુČણા શકિત ખતાવવાને માટે જ ઉપરનું કથન કરાયુ છે. એજ વાત સૂત્રકારે 'नो वेव संपत्या व्याकुर्वद् वा, विकुर्वेति वा, विकुर्विष्यति वा,' मा भूतअतिङ વમાનકાલિક અને ભવિષ્યકાલિક ક્રિયાપદો દ્વારા પ્રકટ કરેલ છે એમ સમજવું. " ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને પૂછે છે હે ભદંત ! जहानामए केइ पुरिसे ' नेवी शेते अध पुरुष 'एगओ जण्णोवइयं ' मे४ मला पर नोठ सटवीने 'गच्छेज्जा' यासे छे, 'एवामेव मे अभागे ' भात्रियप्पा अणगारेणं एमओ जष्णोवय किञ्चगएणं उडूढं वेहासं उप्पएज्जा ?' पोतानी वैडिय शक्तिद्वारा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩ 9
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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