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प्रमेयचन्द्रिका टोका श.३ उ.४ सू.२ वैक्रियवायुकाय वक्तव्यतानिरूपणम् ६१५
वैकिय वायुकायवक्तव्यता प्रस्तावःम्लम्-'पभूणं भंते ! वाउकाए एग महं इत्थिरूव वा, पुरिसरूवं वा; हत्थिरूवं वा; जाणरूवं वा; एवं जुग्ग-गिल्लि-थिल्लिसीय-संदमाणिय रूवं वा, विउवित्तए ? गोयमा! नो इणट्रे समटे, वाउकाएणं विकुव्वेमाणे एगं महं पडागा संठियं रूवं विकुबइ, पभूणं भंते! वाउकाए एगं महं पडागासंठियं एवं विउवित्ता अणेगाइं जोयणाइं गमित्तए ! हन्ता, पभू; से भंते! कि आयड्डीए गच्छइ ? परिङ्ढीए गच्छइ ? गोयमा ! आयड्ढीए गच्छइ, नो परिडढीए गच्छइ, जहा-आयड्ढीए, एवं चेव आय कम्मुणा वि, आयप्पयोगेण वि भाणियत्वं, से भंते ! कि ऊसि ओदयं गच्छइ, पय ओदयं गच्छइ ? गोयमा! ऊसिओदयं पि गच्छइ; पय ओदयं पि गच्छदः से भंते! किं एगओ पडागं गच्छइ ? दुहओ पडागं गच्छइ ? गोयमा! एगओ पडागं गच्छइ, नो दुहओ पडागं गच्छद; सेणं भंते! किं वाउकाए पडागा ? गोयमा ! वाउकाएणं से; नो खलु सा पडागा ॥सू. २॥
लेकर बीजतक के ४ पदोंका संमेलन करने से ४, पत्र के साथ पुष्पादि३ पदों का संमेलन करने से ३, पुष्प के साथ, फल और बीज का संमेलन करने से २, और फलके साथ केवल बीज का संयोजन करने से एक चतुभंगी बन जाती है । इस तरह इन सब का जोड ४५ हो जाता है ॥ सू० १॥
(७) पाननी साथै ०५थी , " " 3 " (८) पनी साथे ॥ साथ
थी ,
था " " " २ , (6) जनी साथै जीना सयोगथा।
આ રીતે બધી મળીને ૪૫ ચતુર્ભાગી બને છે.
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3 २ १ ૪૫
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| સૂ. ૧ છે.
श्री भगवती सूत्र : 3