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________________ ६१४ भगवतीसूत्रो भगी को प्रतिपादन करनेके लिये सूत्रकार कहते हैं कि-'अणगारेणं भंते ! भावियप्पा रुक्खस्स किं फलं पासइ, बीयं पासई' हे भदन्त ! भावितात्मा अनगार वृक्षके फलको देखता है कि बीजको देखता है ! इसका उत्तर देते हुए प्रभु गौतमसे कहते हैं कि हे गौतम कोई एक भावितात्मा अनगार वृक्षके फलको देखता है, कोइ एक भावितात्मा अनगार वृक्षके बीजको देखता है, कोई एक भावितात्मा अनगार दोनोको देखता है और एक भावितात्मा अनगार दोनों को भी नहीं देखता है । इस तरह से यह ४५वीं चतुर्भगी प्रकट की गई है । ४५ भंग किस तरह से होते हैं. यह बात अब टीकाकार कहते हैं-कि जब मूलपद के साथ कन्द से लेकर बीजतक के नौ पदोको एक२ करके संयुक्त करते है तब ९ चतुभंगी होती हैं कन्द के साथ स्कन्ध से लेकर बीजतकके ८ पदोंका जब एक२ करके संमेलन करते हैं तब ८, स्कन्धके साथ त्वम् से लेकर बीज तक के ७ पदों का संमेलन करने से ७, त्वक्-छालके साथ शाखा से लेकर बीज तक के ६ पदों का एक२ करके संमेलन करने से ६, शाखापद के साथ प्रवाल आदि ५ पदोका संमेलन करनेसे ५, प्रवालपदके साथ पत्रादि से यतुगीनु पतिपादन ४२१. भाटे सूत्रा२ नीयन प्रश्न भने उत्तर भाषेछ-'अणगारेणं भंते ! भावियप्पा रुक्खस्स किं फलं पासइ, बीयं पासइ ? ' 3 महन्त ! ભાવિતાત્મા અણગાર વૃક્ષના ફળને દેખે છે, કે બીજને દેખે છે? તેને ઉત્તાર મહાવીર પ્રભુ નીચે પ્રમાણે આપે છે—હે ગૌતમ! કોઈ ભાવિતામાં અણગાર વૃક્ષના ફલને દેખે છે, કોઈ ભાવિતાત્મા અણગાર વૃક્ષના બીજને દેખે છે, કે ભાવિતાત્મા અણગાર વૃક્ષના ફળ અને બીજ બનેને દેખે છે, અને કોઈ ભાવિતાત્મા અણગાર વૃક્ષના ફળને પણ દેખતે નથી અને બીજને પણ દેખતે નથી. આ રીતે સૂત્રકારે ૪૫મી ચતુર્ભગી બતાવી છે, ૪૫ ભંગ કેવી રીતે બને છે, એ સૂત્રકાર હવે બતાવે છે– (૧) મૂળની સાથે કન્દથી લઇને બીજ પર્યન્તનાં પદોના સંયોગથી ચતુર્ભગી બને છે. (२) नी साथ 25थी , , , ८ " " ८ " " " (3) यउनी साथ छालथी , , , ७ , " ७ , , , (४) छानी साथ थामाथी, , , , , ६ " "" (५)शापानी साथी , , , ५ , , ५ , " (8) Eruaनी साथ पान, " " શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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