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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३. उ.१ त्रायस्त्रिंशकदेवऋद्धिविकुर्वणाशक्तिनिरूपणम् ४१ असुरेन्द्रस्य, असुरराजस्य अग्रमहिष्यो देव्यः किंमहर्दिकाः यावत्-कियच्च प्रभू विकुर्वितुम ? गौतम ! चमरस्य असुरेन्द्रस्य, असुरराजस्य अग्रमहिष्यो महद्धिकाः, यावत्-महानुभागाः, तास्तत्र स्वेषां स्वेषां भवनानां स्वासां स्वासां सामानिक साहस्त्रीणाम् स्वासां स्वासां महत्तरिकागाम, स्वासां स्वासां पर्षदाम यावत-एवं महदिकाः,अन्ययथा लोकपालानाम् अपरिशेषम् ।तदेवं भदन्त तदेवं भदन्त ! इति।।४ एवइयं च णं पभू विकुवित्तए) हे भदन्त ! यदि असुरेन्द्र असुरराज चमरके लोकपालोंकी ऐसी बड़ी ऋद्धि है और वे इतनी बड़ी विक्रिया कर सकते हैं, तो (चमरस्म णं असुरिंदस्स असुररण्णो अग्ग महिसीओ देवीओ के महिडियाओ जाव केवइयं च णं पभू विकुवित्तए) असुरेन्द्र असुरराज चमर की जो अग्रमहिषियां हैं वे कितनी विक्रिया करने के लिये शक्ति शालिनी हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररणो अग्गमहिसीओ महिडियाआ जाव महाणुभागाओ) असुरेन्द्र असुरराज चमरकी जो अग्रमहिषियां हैं वे बहुत बड़ी ऋद्धिवाली हैं यावत् बहुत प्रभावशाली हैं। (ताओ णं तत्थ साणं साणं भवसाणं साणं साणं सामाणियसाहस्सीणं, साणं साणं महत्तरियाणं, साणं साणं परिसाणं जाव एवं महिड्डियाओ अण्णं जहा लोगपालाणं अपरिसेसं सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति) वे वहां अपनेविमानों पर, अपने अपने हजार सामानिक देवों पर, (जइणं भंते ! चमरस्स असुरिंदस्स असुररण्णो लोगपाला देवा एवं महिड्डिया जाव एवइयं च पभू विकुवित्तए) के महन्त ! मसुरेन्द्र मसु२२०४ यभरना । જે આટલી બધી ઋદ્ધિવાળા છે અને આટલી બધી ક્રિયશકિત ધરાવે છે તે (चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररण्णो अग्गमहिसीओ देवीओ के महिडियाओ जाव केवडयं च णं पशु विकृवित्तए) असुरेन्द्र भसु२२।०१ यमरनी पट्टीमी ઋદ્ધિઆદિથી સંપન્ન છે? તેઓ કેવી વિકિય શકિત ધરાવે છે? ___ (गोयमा !) गौतन ! (चमरस्स णं अमुरिंदस्सा असुररण्णो अग्गमहिसीओ महिडियाओ जाव महाणुभागाओ) मसुरेन्द्र मसु२२।०४ यमरना ५४२।०ी घll or महा ऋद्धि, धुति, यश सुप भने प्रभावी छे. (ताओ णं तत्थ साणं साणं भवणाणं साणं साणं सामाणियसाहस्सीणं, साणं साणं महत्तरियाणं, साणं साणं परिसाणं जाव एवं महिडियाओ-अण्णं जहा लोगपालाणं अपरिसेसंसेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति) तसा त्या पात पोताना विमान ५२, पातपाताना સહસ્ત્ર સામાનિક દેવે પર, પિત પિતાની સહચરીરૂપ મહત્તરિકા દેવાઓ પર અને શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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