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भगवतीमूत्रे यथा सामानिकास्तथाज्ञातव्याः, लोकपालास्तथैव, नवरम् संख्येयाः द्वीप समुद्राः भणितव्याः (बहुभिः असुरकुमारैः देवैः, देवीभिश्च आकीर्णा यावत् विकुर्विष्यति वा) यदि भगवन् ! चमरस्य असुरेन्द्रस्य, असुरराजस्य लोकपालादेवाः एवं महद्धिकाः, यावत्-एतावच्च प्रभूविकुवितुम्, चमरस्य तायत्तीसथा देवा के महड्डिया ?) हे भदन्त ! असुरेन्द्र असुरराज उस चमर के जो त्रायस्त्रिंशकदेव हैं वे कितनी बड़ी ऋद्धिवाले हैं ? (नायत्तीसया जहा सामाणिया तहा णेयव्वा) हे गौतम ! जिस प्रकार से चमर के सामानिक देवौका वर्णन किया गया है उसी प्रकार से चमर के त्रायस्त्रिंशकदेवोंका भी वर्णन जानना चाहिये। (लोयपाला-तहेव) इसी तरह से लोकपालोंका भी कथन जानना चाहिये। (णवरं) विशेष ऐमा है कि-(संखेजा दीवसमुदा भाणियब्वा) वे अपनी विक्रिया द्वारा निष्पन्न रूपो द्वारा अनेक असुरकुमार देव एवं देवियोंके रूपों द्वारा-तिर्यग्लोकमें संख्यात और द्वीपसमुद्रोंको भर सकते हैं ऐसा जानना चाहिये । (बहुहिं असुरकुमारेहिं देवे हिं देवीहिंय आइन्ने जाव विकुग्विम्संति वा) अनेक असुरकुमारों से तथा देवियोंसे संख्यात द्वीप समुद्रकों भर सकते हैं, ऐसा जो यह उनकी विकुर्वणा के विषयमें कथन किया गया है-सो यह केवल उनका सामर्थ्यमा दिखलाया है यावत् वे ऐसी विक्रिया नहीं करेंगे। (जइणं भंते । चमरस्स असुरिदस्स असुररण्णो लोगपाला देवा एवं महिडिया रण्णो वायत्तीसया देवा के महड्रिया ?) महन्त ! मसुरेन्द्र मसु२२००४ यमरना त्रायसिंशदेवे! ४सी मा द्धि माथी यु४त छ ? (तायत्तीसया जहा सामाणिया तहा णेयवा) ऋद्धि भने विव! शहित विष यमरेन्द्रना सामान वोना वन प्रमाणे । यमरना शायरिश हेवोनुं वर्णन ५ सभा. (लोयपाला तहेव) सोपालोनू थन ५ मे प्रमाणे सभा. (णयरं) विशेषता के छ ? (संखेजा दीवसमुद्दा भाणियव्या) तसा पातानी वैयि शठितथी उत्पन्न ४२। અનેક અસુરકુમાર દેવ અને દેવીઓનાં રૂપથી તિર્યશ્લોકના સંખ્યાત દ્વીપ અને समुद्रीन भा२छाहित ४ छ. (बहुहिं असुरकुमारेहिं देवेहि देविहि य आइन्ने जाव विकुनिस्संति ) “तेसा भने असुरकुमार दुवे अन वीमाथी सयात દીપસમુદ્રોને ભરી દઈ શકે છે તેમની વિબુર્વણ શકિત વિશેનું આ કથન તેમનું સામ પ્રકાર કરવા માટે જ લખવામાં આવ્યું છે. પણ તેમણે એવું કદી કર્યું નથી, એને કરશે પણ નહીં.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩