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________________ - प्रमेयचन्द्रिका. टीका श.३ उ.२ सू. ६ चमरेन्द्रस्योत्पातक्रियानिरूपणम् ३९७ पयन्ति वर्धापयित्वा ‘एवं' वक्ष्यमाणप्रकारेण 'वयासी' अवादिषुः कथितवन्तः 'एस णं' एष खलु भोः 'देवाणुप्षिया' ! देवानुप्रियाः ! 'सक्के' शक्रः 'देविंदे' देवेन्द्रः 'देवराया' देवराजः 'जाव विहरई' यावत-विहरति, यावत् करणात सामानिकत्रायस्त्रिंशकाद्युपेतो दिव्यान् भोग्य भोगान भुञ्जान इति संग्राह्यम् ।।सू०५॥ चमरस्य शक्रम्पति उत्पातक्रियाप्रस्तावः ।। मूलम्-'तएणं से चमरे असुरिंदे, असुरराया तेसिं सामाणिअपरिसोववन्नगाणं देवाणं अंतिए एयमद्रं सोचा, निसम्म आसुरुत्ते, रुटे, कुविए,चंडिक्किए,मिसिमिसेमाणे ते सामाणिअ परिसोववन्नगे देवे एवं वयासी-अण्णे खल्लु भो ! सक्के देविंदे, देवराया, अण्णे खलु भो! से चमरे असुरिंदे, असुरराया, महिड्डीए खल्लु भो! से सक्के देविदे, देवराया, अप्पिडीए खलु भो ! से चमरे असुरिंदे, असुरराया तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया! सक्कं देविदं देवरायं सयमेव अच्चासाइत्तए त्तिकटु उसिणे उसिणभूए जाए यावि होत्था, तएणं से पहिले उसे वधाया 'एवं वयासी' बाद में उन्हों ने उससे ऐसा कहा 'एस णं देवाणुप्पिया ! सक्के देविंदे देवराया जाव विहरति' हे देवानुप्रिय ! यह देवेन्द्र देवराज शक्र है-यावत् आनन्द कर रहा है-यहां यावत् पदसे 'सामानिक त्रायस्त्रिंशकादि पूर्वोक्त' समस्त पदों का ग्रहण हुआ है। तात्पर्य यह है कि सामानिक देवों से और त्रायस्त्रिंशक देव आदि को से युक्त बना हुआ यह शक्र दिव्य भोगों को भोग रहा है ऐसी बात उन सामानिक देवोंने उस चमरेन्द्र को समझाई ॥सू०५॥ विजएणं वद्धाति तेभ wयनाथा यमरेन्द्र ने वधाव्यो, त्या२ मा ‘एवं वयासी' तेभरे तेने मा प्रभारी -'एस णं देवासुप्पिया ! सक्के देविदे देवराया जाव विहरति हेवानुप्रिय ! मे तो हेवेन्द्र हे१२००४ ॥ छ. २म "आन ४३री रह्यो छ,” त्यां सुधार्नु समस्त यन 'जाव' ५४थी घड ४२यु छ. सटो सामानि, वायસિંશક આદિ દેવે પર અધિપત્ય ભગવતે એ તે શકેન્દ્ર ત્યાં દિવ્ય ભેગે ભોગવી રહ્યો છે. આ પ્રકારને જવાબ સામાનિકે એ ચમરેન્દ્રને આપે છે સૂત્ર ૫ છે શ્રી ભગવતી સૂત્રઃ ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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