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________________ ३९८ भगवतीसूत्रे चमरे असुरिंदे, असुरराया ओहिं पउंजइ, ममं ओहिणा आभोएइ, इमेआरूवे अज्झथिए जाव-समुपज्झित्था एवं खलु समणे भगवं महावीरे जंबूदीवे दोवे भारहे वासे, सुसुमारपुरे नयरे असोगवणसंडे उजाणे, असोगवरपायवस्स अहे पुढविसिलापट्टसि अट्ठमभत्तं पगिण्हित्ता एगराइअं महापडिमं उपसंपज्जित्ताणं विहरति ॥ सू० ६ ॥ ___ छाया-ततः खलु स चमरः असुरेन्द्रः, असुरराजस्तेषां सामानिकपर्षदुपपन्नकानां देवानाम् अन्तिके एतम् अर्थ श्रुत्वा निशम्य आसुरुप्तः, रुष्टः, कुपितः, चण्डकितः, मिसमिसयन् तान् सामानिकपर्षदुपपन्नकान् देवान् एवम् अवादीत-अन्यः खलुभोः ! शक्रो देवेन्द्रः, देवराजः, अन्यः खलु भोः ! 'तएणं से चमरे' इत्यादि। सूत्रार्थ- (तएणं) इसके बाद (असुरिंदे असुरराया से चमरे) असुरेन्द्र असुरराज वह चमर (तेसिं सामाणियपरिसोववनगाणं देवाणं अंतिए) उन सामानिक परिषदा में उत्पन्न हुए देवों ने (एयमढे सोचा) इस बातको सुनकर (निसम्म) और उसे अच्छी तरह से मन में निश्चित कर आसुरुत्ते इकदम क्रुद्ध हो गया (रुटे) रोष युक्त हो गया (कुविए) कुपित हो गया । (चंडिकिए) और प्रचण्डकोप से युक्त होकर (मिसमिसेमाणे) मिसमिसाते हुए उसने (ते सामाणियपरिसोववन्नगे देवे) उन सामानिक परिषदा में उत्पन्न हुए देवों से "तएणं से चमरे" त्याla - सूत्राथ-(तएणं असुरिंदे असुरराया से चमरे) न्यारे असुरेन्द्र, मसू२२००८ यमरे (तेसि सामाणियपरिसोववनगाणं देवाणं अंतिए) साभानि४ परिषहमा उत्पन्न थयेसा ते सामानि वानी (एयमदं सोचा) 2. पात सinol (निसम्म) मने तेना ५२ पूरे पूरे पिया ध्ये त्यारे (आसुरुत्ते) ते मे हम धावेशमा भावी गयो (रुटे) तेने ध। शेष 43यो, (कुविए) ते पायभान या, (चंडिकिए) मने प्रय अघमा भावी येता तेथे (मिसमिसेमाणे) हांत ४ययावान तथा tin नाय 18 ४ापार (ते सामणियपरिसोववन्नगे देवे एवं क्यासी) सामान परिपामi Sपन्न श्री भगवती सूत्र : 3
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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