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________________ ३९० भगवती सूत्रे पुरन्दरस्तम् 'जाव - दस दिसाओ' यावत् दशदिशाः 'उज्जोवेमाणं' उद्योतयन्तम् स्वतेजसा प्रकाशयन्तम् यावत्पदेन 'दाहिण लोग हिवई, बत्तीस विमाणसयसहस्सा हिवई, एरावणवाहणं, सुरिंदं, अरयंचरवत्थघरं, आलइअमालमउडं, नवहेम चारुचितचंचलकुंडलविलिहिज्जमाणगड ' इत्यादि 'दिव्वेण तेषणं दिवाए aar' इत्यन्तम् दक्षिणार्ध लोकाधिपतिम्, द्वात्रिंशद् विमानशतसहस्राधिपतिम् द्वात्रिंशल्लक्षविमानस्वामिनम् ऐरावणवाहनम्, सुरेन्द्रम्, अरजोऽम्बरवस्त्र " 6 " विनाश कर देता है 'जाव दस दिसाओ उज्जोवेमाणं' यावत् जो ऊपर, नीचे एवं पूर्वादि चार दिशाओं एवं इनके चारों कोणोंको अपने तेज से प्रकाशित करता रहता है, 'पभासेमाणं' प्रभायुक्त करता रहता है. ऐसे इन्द्र को उसने 'सोहम्मे कप्पे' सौधर्म कल्प में 'सोहम्म वर्डिस विमाणे' सौधर्मावतंसक विमान में 'सक्कंसि सीहासणंस' शक्र नामक सिंहासन पर जाव दिव्वाई भोग भोगाई भुंजमाणं पासइ' यावत् दिव्य भोग भोगते देखा जाव दसदिसाओ में जो यावत् पद आया हैं - उससे ' दाहिणडूलोगाहिवई, बत्तीस विमाणसय सहस्साहिवई, एरावणवाहणं, सुरिंद अरयंबरवत्थघरं, आलइयमालमउडं नवहेमचारुचित्तचंचलकुंडलविलिहिज्ज माणगंड, इत्यादि से लेकर 'दिव्य तेजसा दिव्यया लेश्यया यहां ' तकका पाठ संग्रह हुआ है । इन पदों का अर्थ इस प्रकार से है - शक्र दक्षिणार्धलोक का अधिपति है-बत्तीस लाख विमानोंका स्वामी है, इसका वाहन ऐरावत हाथी है देवोंका यह सर्वोपरि शासक है, (नाथ ४२नारो) छे. 'जाव दसदिसाओ उज्जोवेमाणं' ने पूर्व पश्चिम उत्तर, दक्षिण, ઇશાન, અગ્નિ, નૈઋત્ય, વાયવ્ય, ઉપરની અને નીચેની એ દસે દિશાએને પેાતાના તેજથી अाशित 'पभासेभाणे' भने अलाथी युक्त उरी रह्यो छे, मेवा राजेन्द्रने तेथे (अमरेन्द्रे) 'सोहम्मे कप्पे सोहम्मवर्डिसए विमाणे धत्याहि' सौधर्म उदयसां सौधर्भावतःस विभानभां शत्रु नामना सिंहासन पर 'जाव दिव्वाई भोग भोगाई भुजमाणं पासई' हिव्य लोगोनो उपलोग उरतो लेयो. 'जाव दसदिसाओ' भां 'जाव' ५८ वयरा' छे तेथी नीथेन। सूत्रपाठ श्रणु उरायो छे - ' दाहिएड्ड लोगाहिas, बत्तीस विमाणसयसहस्सा हिवई, एरावणवाहणं, सुरिंदं अरयंबरवत्थधरं, आलइयमालमउड नवहेमचारुचित्तचंचलकुंडल विलिहिज्ज माणगंडं' थी बहने 'दिव्य तेजसा दिव्यया लेश्यया' सुधीना पाई अड्डाणु उरायो छे. या यहोना अर्थ નીચે પ્રમાણે છે. exped શક્ર દક્ષિણા લાકના અધિપતિ છે, તે ૩૨ લાખ વિમાનાના સ્વામી છે, ઐરાવત હાથી તેનું વાહન છે, દેવેને તે સર્વોપરિ શાસક છે, આકાશના જેવાં શ્રેષ્ઠ વસ્ત્રોને તે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩ 9
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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