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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३ उ. २ सू. ५ चमरेन्द्रस्योत्पातक्रियानिरूपणम् ३८९ धर्मे कल्पे सौधर्मकल्पपर्यन्तम् 'तत्थ' तत्र-सौधर्मे कल्पे 'पासइय' पश्यति च 'सकं देविदं देवरायं' शक्रं देवेन्द्र, देवराज, मघवं, मघवानम् मघा महामेघास्ते यस्य वशे सन्ति स मघवान् तम्, 'पाक सासणं' पाकशासनम् पाको बलवान् शत्रुः तं शास्तीति तम् ‘सयक्कयं' शत ऋतुम् शतं क्रतूनाम् अभिग्रहविशेषाणां श्रमणोपासकपञ्चमपतिमारूपाणाम्बा कार्तिकश्रेष्ठिभवापेक्षया यस्य तम्, 'सहस्सक्खं' सहस्राक्षं सहस्रमणां यस्य स सहस्राक्षः इन्द्रस्य खलु पश्चशतसंख्याका मन्त्रिणः सन्ति तदीयानाश्चाक्ष्णा मिन्द्रप्रयोजनव्यापृतत्वेन इन्द्रसम्बन्धितया विवक्षितत्वात्, 'वज्जपाणि' वज्रपाणिम् वज्र पाणौ यस्य तम्, 'पुरंदरे' पुरन्दरम् असुरादिपुराणां दारणात् 'जाव सोहम्मे' जहां तक प्रथम कल्प सौधर्मकल्प है वहां तक देखा 'तत्थ' उस सौधर्म देवलोक में उसने किसको देखा? तो इसके लिये कहा गया है कि उसने 'देविंदं देवरायं सक्क पासइय' देवेन्द्र देवराज शक्रको देखा 'मघवा' जिस देवेन्द्र देवराज शक्रके वश में बडे२ मेघ है, 'पाकसासणं' जिसका शासन-आज्ञा बलवान से भी बलवान शत्रु पर चलती है 'सयकय' कार्तिक श्रेष्ठी के भवकी अपेक्षा से जिसने श्रमणोपासक पंचम प्रतिमारूप सौ वार पडिमाको अपने पहिलेके जीवन में आराधन किया था 'सहस्सक्खं ' जिसके एक १ हजार नेत्र है, इन्द्रके ५०० मंत्री हैं अतः उन सबके नेत्र इन्द्रके कार्य में काम आते है-इसलिये उपचारसे उन नेत्रोको इन्द्र के मान लिया जाता है-इस अपेक्षा इन्द्रको 'सहस्राक्ष' कहा जाता है। 'वजपाणिं' हाथमें जिसके वज्र है 'पुरंदरं' असुर आदिके नगरोंका जो दारक'जाव सोहम्मे कप्पे' तो भवधिज्ञानथी सौधर्म व सुधाष्टि नाभी. त्या तेथे
नयु, त नयना सूत्रमा मतायुछे-'देविदं देवरायं सकं पासइय' त्या तरी हेवेन्द्र हे१२॥ श नयो. शहेन्द्र भाटे नायनां विशेष। पापा छे. 'मघवा' ने शन्दने अधीन भेध छ, 'पाकसासणं' मवानमा मवान शत्रु५२ ५५ रन शासन याले छे. 'सयक्कयं' ति: शहना अपम भले श्रमणापास४ ५यम प्रतिभा३५ परिभासानु से पा२ मा२धन यु तु, 'सहस्सक्खं' रेनेमे ने -1न्द्रना ૫૦૦ મંત્રી છે. તે સૌનાં નેત્ર ઈન્દ્રના કાર્યમાં મદદરૂપ બને છે. તેથી ઔપચારિક રીતે તેમનાં નેત્રને પણ ઇન્દ્રના નેત્રો ગણ્યાં છે. તે કારણે શકેન્દ્રને સહસ્રાક્ષ કહૂલ છે. 'वज्जपाणिनाथमा ११ पुरंदरं असुर माहिना नगरानी २ विहा२४
श्री भगवती सूत्र : 3