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________________ चन्द्रिका टीका श. ३ उ. २ सू. ३ चमरेन्द्रस्य पूर्वभवादि निरूपणम् ३६१ दारुमयं प्रतिग्रह गृहीत्वा मुण्डो भूत्वा दानमय्या प्रव्रज्यया मत्रजितेाऽपि च सन तच्चैव यावत् - आतापनभूमितः प्रत्यवरुह्य स्वयमेव चतुष्पुटकं दारुमयं प्रतिग्रहं गृहीत्वा वेभेले सन्निवेशे उच्च-नीच - मध्यमानि कुलानि गृहसमुदानस्य भिक्षाचया अटित्वा यद् मम प्रथमे पुटके पतति, कल्पते मम तत् पथि पथिकानां असणं पाणं खाइमं साइमं जान सयमेव चउप्पुडयं दारुमयं पडिगहियं गहाय मुंडे भवित्ता दाणामाए पबजाए पञ्चइए वि य णं समाणे) यावत् विपुल अशनपान, खादिम, स्वादिम रूप भांति भांति के पदार्थोंको पकवाकर स्वजन आदिकोंके लिये भोजन कराया. यावत् बाद में अपने आप चार खानेवाले उस काष्ठ के पात्र को लेकर वह मुंडित हो गया. मुंडित होकर 'दानामा' इस प्रव्रज्या से वह फिर पूरण गाथापति प्रव्रजित हुआ । (तं चैव जाव) प्रव्रजित होकर उसने पूर्ववर्णित तामलिप्स की तरह सब प्रकार से तपश्चर्या की अर्थात्-आतापना भूमि में आतापनाली इत्यादि सब कथन यहां पर पहिलेकी तरह जानना चाहिये । (आयावणभूमीओ पच्चोरुभित्ता) आतापना भूमि से नीचे उतरकर (सयमेव दारुमयं पडिग्गहियं गहाय) और अपने आप काष्टनिर्मित पात्रको उठाकर (बेभेले संनिवेसे) वह उस बेभेल संनिवेशमें (उच्चनीय मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरि याए अडेत्ता) उच्चनीच एवं मध्यम कुलों में गृह समुदानकी भिक्षाचर्यां के निमित्त वह घूमा अर्थात् भिक्षालेनेकी विधिके अनुसार वह भिक्षावृत्ति करनेके लिये ऊँच नीच आदि गृहों में गया. वहां जाकर हाय मुंडे भविता पाणामाए पवज्जाए पव्वइए वि य णं समाणे) तेथे पशु ચારે પ્રકારના વિપુલ અશન, પાન, ખાદ્ય અને સ્વાદ્ય આહારી તૈયાર કરાવીને સ્વજન આદિને જમાડયા હતા. ત્યાર બાદ પોતાની જાતે જ ચાર ખાનાવાળું પાત્ર લીધુ, माथे भूउ। उराव्यो भने “नासा” नामनी अवल्या अंगीऔर उरी. (तं चैव जाव) પ્રવ્રજ્યા લઈને તેણે પશુ પૂર્ણિત તામઢીના જેવી જ તપસ્યા કરી. આતાપના भूभिभां आतायना सेवानुं वगेरे म्थन सहीं ग्रह ४ लेभे ( आयावणभूमिओ पचोरुभित्ता) पाराने हिवसे पूरा पशु यातायना लूभि परथी नीचे उतरीने (सयमेब दारुमयं पडिग्गाहियं गहाय) पोतानी लते अष्ठनिर्मित यात्रने लाने (बेभेले संनिवेसे) ते मेलेस नगरमा ( उच्चनीयमज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडेत्ता) उय्य, नीय भने मध्यम यरसमुद्वायभां गौयरीना भाटे ભ્રમણુ કરતા – એટલે ભિક્ષા પ્રાપ્તિની જે વિધિ ખતાવી છે તે પ્રમાણે તે ભિક્ષા શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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