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________________ ३६० भगवतीसूत्रे गौतम ! तस्मिन् काले तस्मिन् समये इहैव जम्बूद्वीपे द्वीपे, भारते वर्षे विन्ध्यगिरिपादमूले वेभेलो नाम सनिवेशः आसीत् , वर्णकः तत्र वेभेले सभिवेशे पूरणो नाम गाथापतिः परिवसति-आन्यः, दीप्तः, यथा तामले: बक्तव्यता तथा ज्ञातव्या, नवरम्-चतुष्पुटकं दारुमयं प्रतिग्रहं कृत्वा, यावत्विपुलम् अशनम् , पानम् , खाधम् , स्वाधम् , यावत्-स्वयमेव चतुष्पुटकं गोयमा !) हे गौतम ! मैं इस विषयमें तुमसे कहता हूं जो इस प्रकार से है । ( तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबूदीवे दीवे भारहे वासे बिंझगिरि पायमूले बेभेले संनिवेसे होत्था वण्णओ तत्थ णं बेभेले संनिवेसे पूरणे नामं गाहावई परिवसइ) उस काल और उस समयमें इसी जंबू द्वीप नामके द्वीपमें स्थित भारतवर्ष क्षेत्रमें विंध्यगिरिकी तलहटीमें बेभेल इस नामका एक संनिवेश था । वर्णकइस बेभेल संनिवेशमें पूरण नामका एक गाथापति रहता था। यह (अढे दित्ते) वह आढ्य-विशेष धनाढय और दीप्त-प्रभावशाली था। (जहा तामलित्तस्स वत्तव्वया तहानेयव्वा) ताम्रलिप्त तपस्वीकी तरह इस पूरण गाथापतिकी भी वक्तव्यता जाननी चाहिये । (नवरं) ताम्रलिप्त तपस्वी की वक्तव्यता की अपेक्षा इस पूरण गाथापतिकी वक्तव्यता में जो अन्तर है वह इस प्रकारसे हैं-(चउप्पुडयं दारुमयं पडिग्गहियं करेत्ता) इसने जो काष्ठका पात्र बनवाया था-वह चारखाने का था। इस तरह चार खानेका काष्ठका पात्र बनवाकर (जाव विपुलं (एवं खलु गोयमा ! ) 3 गौतम ! यभरेन्द्रना पूर्व नपर्नु वृत्तान्त नीय प्रभारी छ - (तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबूदीवे दीवे भारहे वासे बिंझगिरि पायमूले बेमेले संनिवेसे होत्था वण्णओ तत्थ णं बेभेले संनिवेसे पूरणे नामं गाहावई परिवसइ) ते जे भने ते सभये, मा दीपमा ३al ભારત વર્ષમાં વિખ્યાચળ પર્વતની તલેટીમાં બેભેલ નામનું એક ગામ હતું. તેનું વર્ણન ચંપા નગરી પ્રમાણે સમજવું. તે બેભેલ નગરમાં પૂરણ નામે એક ગાથાપતિ (७२५) हेत। तो ते (अड़े दित्ते) धणे पनाढय भने प्रभावशाली हुतt. (जहा तामलित्तस्स बत्तव्चया तहा नेयव्वा) तामसिस (allel तपसीना न प्रमाणे पूरण न ५ सभा, (नवरं) परंतु मीना वर्णन ४२di पूरन। नभ माटो तत समन्या. (चउप्पुडयं दारुमयं पडिग्गहियं करेता) પૂરણે પ્રત્રજ્યા અંગીકાર કરતી વખતે ચાર ખાનાવાળું કાષ્ઠપાત્ર બનાવરાવ્યું હતું. (जाव विपुलं असणं पाणं खाइमं जाव सयमेव चउप्पुडयं दारुमयं पडिग्गहियं શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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