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भगवती सूत्र
किम् आद्रियमाणः प्रभुः ? अनाद्रियमाणः ? प्रभुः 'गौतम ! आद्रियमाणोऽपि प्रभुः, अनाद्रियमाणोऽपि प्रभुः । प्रभुः खलु भदन्त ! शक्रः देवेन्द्रः, देवराजः ईशानं देवेन्द्र देवराजं सपक्षं समतिदिशम् समभिलोकयितुम् ? यथा प्रादुर्भा वना, तथा द्वौ अपि आलापको ज्ञातव्यौ । प्रभुः खलु भदन्त ! शक्रो देवेन्द्रः, देवराज ईशान देवेन्द्र देवराज शक के पास जा सकता है क्या ? (हंता पभू )हां जा सकता है । (से णं भंते ! आढायमाणे पभू अणाढायमाणे पभू ?) हे भदन्त ! वह ईशानेन्द्र जब शक्र के पास आता है तो क्या वह उसके द्वारा बुलाया हुआ आता है कि विना बुलाया हुआ आता है । (गोयमा ! आढायमाणे वि पभू अणाढायमाणे विपभू ) है गौतम! आद्रित होता हुआ भी बुलाया हुआ भी आता है और विना बुलाया भी आता है । परन्तु इसके लिये यह नियम नहीं है कि यह वहाँ पहुँचने पर उसका आदर करे ही, करे भी और नहीं भी करे । ( पभू णं भंते । सक्के देविंदे देवराया ईसाणं देविदं देवरायं सपवि सपडिदिसिं समभिलोएह ) हे भदन्त देवेन्द्र देवराज शक्र देवेन्द्र देवराज ईशान को चारों तरफ और सब तरफ देख सकता है क्या ? (जहा पाउन्भवणा तहा दोवि आलावगा नेयव्वा) हे गौतम! जिस प्रकार पास में आने के संबंध में दो आलापक कहे हैं उसी तरह से देखने के विषय में भी दो आलापक जानना चाहिये । હે ભદન્ત ! દેવેન્દ્ર દેવરાજ ઇશાન, દેવેન્દ્ર દેવરાજ શક્રની પાસે જઈ શકે છે ? ( हंता पभू) डा, ४४ श छे. ( से णं भंते ! आढायमाणे पभू ? अणाडायमाणे पभृ ? ) डे लहन्त ! राजेन्द्र मोलावे त्यारे शानेन्द्र तेनी यासे कहा थ छे ? } बगर मोसाव्ये या ४४ शडे छे ? ( गोयमा ! आढायमाणे वि पभू अणाढायमाणे वि पभू ) हे गौतम! भोलावे त्यारे पशु ४४ शडे हे मने विना ખેલાવ્યે પણ જઇ શકે છે. પણ તેને માટે એવા નિયમ નથી કે તે ત્યાં પહોંચતા તેને ( શક્રેન્દ્રને ) આદર જ કરે. આદર કરે પણ ખરા અને ન પણ કરે. (पभ्रूणं भंते ! सक्के देविंदे देवराया ईसाणं देविंदं देवरायं सपर्विख सपडि दिसिं समभिलोएइ ? ) हे महन्त देवेन्द्र हेवरा देवेन्द्र देवरान ईशाननी यारे त२३ भने न्यारे पुणे लेह शम्वाने समर्थ छे मरे ? ( जहा पाउन्भवणा तहा दोवि आलावा नेयव्वा) हे गौतम! पासे भाववाना विषयभां ने अहारना ये सूत्रयाही કહેવામાં આવ્યા છે. એવાં જ એ સૂત્રપાઠા એઈ શકવાના વિષયમાં' પણ જાણવા.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩