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________________ प्र.टी. श. ३ उ. १ स. २७ ईशानेन्द्रशक्रेन्द्रयोर्गमनागमनदिनिरूपणम् २७७ राजस्य अन्तिकं प्रादुर्भवितुम् ? हन्त प्रभुः । स खलु भदन्त ! किम् आदियमाणः प्रभुः ? अनाद्रियमाणो वा प्रभुः ? गौतम ! आद्रियमाणः प्रभुः, नो अनाद्रियमाणः प्रभुः । प्रभुः खलु भदन्त ! ईशानो देवेन्द्रः देवराजः शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य अंतिकं प्रादुर्भवितुम् ? हन्त, प्रभुः । स खलु भदन्त ! तथा एकभाग में नीची होती है और एक भाग में निम्न (नीची) होती है, उसी तरह से विमानों के संबंध में भी जानना चाहिये। इस कारण से देवेन्द्र देवराज शक के और देवेन्द्र देवराज ईशान के विमानों के विषय में पूर्वोक्तरूप से कहा है। (पभूणं भंते ! सक्के देविंदे देवराया ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो अंतियं पाउभवित्तए ?) हे भदन्त ! देवेन्द्र देवरोज शक देवेन्द्र देवराज ईशान के पास आसकता है क्या ? (हंता पभू ) हाँ आ सकता है। (से णं भंते ! कि आढायमाणे पभू अणाढायमाणे पभू ?) हे भदन्त ! जब देवेन्द्र देवराज शक ईशान के पास आ सकता है- तो क्या वह उनके द्वारा बुलाया होकर आ सकता है ? कि बिना बुलाया होकर आ सकता है ? (गोयमा! आढायमाणे पभू , णो अणाढायमाणे पभू) हे गौतम ! जब ईशान शक्र को बुलाता है तब वह आता है और जब नहीं बुलाता है तब नहीं आता है। आने पर वह उसका आदर करता है। अनादर नहीं करता। (पभू णं भंते! ईसाणे देविंदे देवराया सकस्स देविंदस्स देवरण्णो अंतिय पाउन्भवित्तए) हे भदन्त ! देवेन्द्र એક ભાગ નીચે હોય છે અને કેઈ એક ભાગ નિગ્નેતર (વધારે નીચા) હોય છે, એવી જ રીતે વિમાને વિષે પણ સમજવું. એ કારણે દેવેન્દ્ર ઇશાન દેવેન્દ્ર શકના વિમાને વિષે ઉપરોક્ત કથન કરાયું છે. આ (पभूणं भंते ! सक्के देविंदे देवराया ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो अंतियं पाउभवित्तए ?) 3 महन्त ! शु . १२०८ २२४ हेवेन्द्र हेवा शाननी पासे भावी श छ ? (हंता पभू ) 1, मावी छे. (सेणं भंते ! किं आढायमाणे पभू अणाढायमाणे पभू?) HE-1 ! हेवेन्द्र देवरा श ने शानेन्द्र पासे જઈ શકે છે, તે ઈશાનેન્દ્ર બેલાવે ત્યારે જઈ શકે છે કે વગર બોલાવ્યે જઈ શકે છે? (गोयमा ! आढायमाणे पभू, णो अणाढायमाणे पभू) गीतम! न्यारे ઈશાનેન્દ્ર શકેન્દ્રને બેલાવે ત્યારે તે ઈશાનેન્દ્ર પાસે આવી શકે છે, વગર બેલાબે भावी शो नथी. मावे त्यार ते तेनो माह२ ४२ छ, भनाइ२ ४२ते। नथी.(पभणं भंते ! "ईसाणे देविंदे देवराया सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो अंतियं पाउन्भवित्तए) શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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