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________________ २७६ भगवतीसूत्रे तराणि एव, ! ईशानस्य वा देवेन्द्रस्य, देवराजस्य विमानेभ्यः शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य विमानानि ईषद्नीचतराणि चैव, ईषद् निम्नतराणि चैव ! हन्त, गौतम ! शक्रस्य तच्चैव सर्व ज्ञातव्यम् । तत् केनार्थेन भदन्त ? गौतम ! तद्यथा नाम करतलं स्यात्-देशे उच्चम्, देशे उन्नतम्, देशे नीचम्, देशे निम्नम्, तत् तेनार्थेन गौतम ! शक्रस्य देवेन्द्रस्य, देवराजस्थ यावत्-इषत् निम्नतराणि चैव । प्रभुःखलु भदन्त ! शक्रो देवेन्द्रः देवराजः ईशानस्य देवेन्द्रस्य, देवईशान के जो विमान हैं वे क्या कुछ ऊँचे हैं ? क्या कुछ उन्नत हैं ? (ईसाणस्स वा देविंदस्स देवरण्णो विमाणेहिंतो सकस्स देविंदस्स देवरण्णो विमाणा ईसि णीययरा चेव ईसिं निण्णयरा चेव) अथवा देवेन्द्र देवराज ईशान के जो विमान हैं उनसे शक्र के जो विमान हैं वे क्या कुछ नीचे हैं ? क्या कुछ निम्नतर है ? (हंता गोयमा ! सकस्स तं चेव सव्वं नेयव्वं) हां गौतम ! शक्र के विमानों से ईशान के विमान कुछ थोडे उच्चतर हैं, कुछ उन्नततर हैं। तथा ईशान के विमानों से शक्र के विमान कुछ थोडे नीचे हैं और कुछ निम्न तर हैं। (से केणटेणं ?) हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ? (गोयमा ! से जहा नामए करयले सिया देसे उच्चे, देसे उन्नए, देसे णीए, देसे णिपणे से तेणटेणं गोयमा! सकस्स देविंदस्स देवरण्णो जाव इसिं निण्णयरा चेव) हे गौतम ! जैसे कोई एक हाथकी हथेली एक भाग में ऊँची होती है. एक भाग में उन्नत होती है, उस्यतर छ ? थे। वधु जन्नत छ ? (ईसाणस्स वा देविदस्स देवरण्णो विमाणेहितो सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो विमाणा ईसिं णीययरा चेव ईसिं निण्णयरा चेव) हेवेन्द्र हे१२००४ ४ानन विमानो ४२di शन्द्रना विमान थे। प्रभा मा नयां छ ? शुते या नीचा टिना छे ? (हंता गोयमा ! सक्कस्स तं चेब सव्वं नेयध्वं गौतम ! शन्दना विमान। ४२ता थानेन्द्रना विभाना थोडी १५ ઊંચાઈ એ છે, તથા કંઈક વધારે ઉન્નત છે. તથા ઈશાનેન્દ્રનાં વિમાને કરતાં શોના विमानो या ना ये स्थान छ, मने तेना ४२ता था। नीय छे. ( से केणटेणं !) उ महन्त ! ५५ ॥ ४२0 मे ४ छ। ? (गोयमा! से जहा नामए करयले सिया देसे उच्चे, देसे उन्नये, देसे णीए, देसे णिण्णे से तेणटेणं गोयमा ! सक्कस देविंदस्स देवरण्णो जाव ईसिं निण्णयरा चेव) गीतम! 2ी शत કેઈ હાથની હથેલીને એક ભાગ ઊંચે હોય છે– એક ભાગ ઉન્નત હોય છે, તથા શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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