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म. टी. श.३. उ.१ सू. २७ ईशानेन्द्रशक्रन्द्रयोर्गमनागमनादिनिरूपणम २७९ देवराजः ईशानेन देवेन्द्रेण देवराजेन, सार्धम् आलापं वा संलापं वा कर्तुम् ? इन्त, गौतम ! प्रभुः यथा प्रादुर्भावना । अस्ति ग्बल्लु भदन्त ! तयोः शक्रेशानयोः देवेन्द्रयोः देवराजयोः कृत्यानि करणीयानि समुत्पधन्ते ? हन्त, अस्ति । तत् कथमिदानीम् अकुरुतः ? गौतम ! तदैव खलु स शक्रः देवेन्द्रः, देवराजः ईशानस्य देवेन्द्रस्य, देवराजस्य अन्तिकं प्रादुर्भवति, ईशानः खलु देवेन्द्रः देवराजः शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य अन्तिकं प्रादुर्भवति-इति भोः शक्र ! (पभू णं भंते ! सक्के देविंदे देवराया ईसाणेणं देविदेणं देवरण्णा सद्धि आलापं वा संलापं वा करित्तए) हे भदन्त ! देवेन्द्र देवराज शक्र देवेन्द्र देवराज ईशान के साथ बातचीत कर सकता है क्या ? (हंता गोयमा ? पभू जहा पाउन्भवणा) हा गौतम ? बातचीत कर सकता है, इस विषय में जैसा कथन पास में आने के संबंध में कहा गया हैवैसा जानना चाहिये। (अस्थि णं भंते ? तेसिं सकीसाणाणं देविंदाणं देवराईणं किच्चाई करणिजाई समुपज्जति) हे भदन्त ? देवेन्द्र देवराज उनदोनों शक्र और ईशान के परस्पर करने योग्य कार्य होते हैं क्या ? (हंताअत्थि) हां हो सकते हैं। (ते कहमियाणिं पकरेंति) हे भदन्त ? जब इन दोनों के आपस में कार्य हो सकते हैं तो उस समय इन दोनों को आपस में बोलने की पद्धति कैसी होती होगी? (गोयमा? ताहे चेव णं से सक्के देविंदे देवराया ईसाणस्स देविंदस्स देवरणो अंतियं पाउब्भवइ, ईसाणे वा देविदे देवराया सकस्स देविदस्स देवरणो अंतियं पाउन्भवइ इति भो ? सक्का ? देविंदा ? (पभूणं भंते ! सक्के देविंदे देवराया ईसाणेणं देविदेणं देवरणा सद्धिं आलापं वा संलापं वा करित्तए ?) महन्त ! हेवेन्द्र १२।१४ श६, हेवेन्द्र देवरा शान साथै वातयात ४री छ ? (हंता गोयमा ! पभू जहापाउब्भवणा) , गौतम! શકેન્દ્ર ઈશાનેન્દ્ર સાથે વાતચીત કરી શકે છે– પાસે આવવા વિષે જેવું કથન કરાયું छ, म १ ४थन 241 विषयमा ५५५ सभा. (अस्थिणं भंते ! तेसिं सक्कीसाणाणं देविंदाणं देवराईणं किच्चाई करणिज्जाइं समुपज्जंति ? ) महत! ते मन्ने દેવેન્દ્રો દેવરાને (ઈશાનેન્દ્ર અને શક્રેન્દ્રને) પરસ્પર કરવા એગ્ય કાર્યો હોય છે ખરાં? (हंता अत्थि) गौतम ! तेमा ५२२५२ ४२१॥ योग्य आय हाय छे. (ते कहमि याणि पकरेंति ?) 6-1 ! मापसभा ४२१॥ योग्य आय ४२ती मते मानी आपसमा वातयात ४२वानी पद्धति की डाय छ। (गोयमा ताहे चेव णं सक्के देविदे देवराया ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो अंतियं पाउन्भवइ, ईसाणे वा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩