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________________ २६४ भगवतीसरे वास्तव्याः बहवोऽसुरकुमाराः देवाश्च, देव्यश्च ईशानम् देवेन्द्रम् , देवराजम् आदियन्ते, यावत्पर्युपासते, ईशानस्य देवेन्द्रस्य, देवराजस्य आज्ञोपपात-वचननिर्देशे तिष्ठन्ति, एवं खलु गौतम ! ईशानेन देवेन्द्रेण देवराजेन सा दिव्या देवद्धिः, यावत् अभिसमन्वागता ॥ मू० २५ ॥ टीका-"तएणं से" ततः खलु स 'ईसाणे' ईशानः 'देविदे' देवेन्द्रः देवराजः 'तेसिं' तेषाम् ईसाणकप्पवासीणं' ईशानकल्पवासिनाम् 'बहूर्ण' पीछे खेंच लिया, अर्थात् उनके अपने अपराधकी क्षमा मांगने पर ईशान ने उनके अपराध को क्षमा कर दिया और अपनी तेजोलेश्या संहृत करली [तप्पभिइच णं गोयमा ! ते बलिचचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य ईसाणं देविदं देवरायं आढ़ति, जाव पज्जुवासंति] उस दिन से लेकर हे गौतम ! उन बलिचंचाराजधानी के रहनेवाले अनेक असुरकुमार देवोंने और देवियों ने देवेन्द्र देवराज ईशान का आदर किया यावत् उसकी पर्युपासनाकी। [ईसाणस्स देविंदस्स देवरणो आणा. उववाय वयणनिद्देसे चिट्ठति] तथा तभी से देवेन्द्र देवराज ईशान की आज्ञा में सेवा शुश्रषा में, वचन में, और निर्देश में रहने लगे। [ एवं खलु गोयमा! ईसाणेणं देविदेणं देवरण्णा सा दिव्वा देविडी जाव अभिसमण्णागया] इस प्रकार से हे गौतम ! देवेन्द्र देवराज ईशान ने वह दिव्य देवर्द्धि यावत् अभिसमन्वागत की है ॥ टीकार्थ-'तएणं' इसके अनन्तर 'ईसाणे देविदे देवराया' देवेन्द्र देवराज ईशानने जब 'तेसिं ईसाणकप्पवासीणं बहूर्ण माणियाणं' तोश्या पाछी में या सीधी. (तप्पभिई च णं गोयमा ! ते बलिचंचारायहाणि वत्थ वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओय ईसाणं देविदं देवरायं आढति, जाव पज्जुवासंति) गौतम ! त्यारथी १३ ४ीने पलियया २४ानीनिवासी અનેક અસુરકુમાર દે અને દેવિયે દેવરાજે ઈશાનેન્દ્રને આદર આપે છે અને तभनी उपासना ४२ छ. (ईसाणस्स देविदस्स देवरण्णो आणा-उववाय वयणनिदेसे चिति) त्यारथी तो वेन्द्र देवरा शाननी माज्ञा, क्यन भने निहुँ शने ઉથામતા નથી. તેઓ તેમની સેવા શુશ્રષા કરવાને તથા આજ્ઞા અનુસરવાને તત્પર રહે છે (एवं खलु गोयमा ! ईसाणेणं देविदेणं देवरण्णा सा दिव्या देविड्डी जाब अभिसमण्णागया ) गौतम ! मा प्र४२ हेवेन्द्र १२१८ Jun मा हिय ४५સમૃદ્ધિ આદિની પ્રાપ્તિ કરી છે. - "तएणं ईसाणे देविदे देवराया त्याह" न्यारेशान निवासी भने । भने वियोनी “अंतिए" पासेथी (मटले भने भुभे) देवेन्द्र हे१०४ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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