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________________ म. टीका श.३ उ. १ स. २५ ईशानेन्द्रकृतकोपस्वरूप निरूपणम् २६५ बहूनाम् ‘वेमाणियाणं' वैमानिकानाम् 'देवाण य देवीण य' देवानाञ्च देवीनाश्च 'अंतिए' अन्तिके-समीपे 'एयमटुं' इममर्थम् एतादृशं स्वावमानजनक स्वशरीरावघर्षणकदर्थनादिकम् ‘सोचा' श्रुत्वा 'निसम्म' निशम्य हदिअवधार्य 'आसुरुत्तः' आसुरुप्तः नितान्तकोपाविष्टः 'जाव-मिसमिसेमाणे' यावत् मिस मिसयन् क्रोधेन 'मिसमिस' इति शब्दं कुर्वन् यावत्पदेन 'कुपितः चण्डकितः' इति संगृह्यते 'तत्थेव' तत्रैव ईशानकल्पे एव 'सयणिज्जवरगये' शयनीयवरगतः श्रेष्ठशय्यास्थित एव 'तिवलियं' त्रिवलिकां 'भिउडिं' भृकुटि 'णिडाले' ललाटे 'साह१' संहत्य 'बलिचंचा रायहाणि अहे' बलिचञ्चाराजधानीम् अधः अध. उन ईशानकल्प में रहनेवाले अनेक वैमानिक 'देवाणं देवीण अंतिए' देवों और देवियों के पास से अर्थात् मुख से 'एयमटुं' इस अर्थको कि उन्होंने मेरा अपमान करने के निमित्त मेरे मृतक शरीर को जमीन पर बहुत ही बुरी तरह से क्रोधादिक के आवेश में आकर घसीटा है, उसकी कदर्थना दुर्दशा आदि की है, सुना तो ‘सोचा निसम्म' सुन करके और उस पर अच्छी तरह से विचार करके वह आसुरुत्ते' अत्यन्तकोप में ईशानेन्द्र भर गया 'जाव' 'मिसमिसेमाणा' और यावत् उनके इस दुष्कृत्य पर उसे मिसमिसी छुट आई-क्रोध के आवेग से उसके मुखसे “मिस मिस" ऐसा शब्द निकलने लग गया, यहां यावत्पद से 'कुपित, चण्डकित' इन पदों का संग्रह हुआ है । 'तत्थेव सयणिज्जवरगए तिवलियं भिउर्डि' वहीं पर अपनी शय्या पर बैठे २ उसने अपनी भ्रकुटि को चना लिया उसमें त्रिवली पड गई 'निडाले साह ' मस्तक पर इस प्रकार से त्रिवलियुक्त भौह चढाकर उसने 'बलिचंचारायहाणि' ઈશાને જ્યારે આ વાત જાણી તેમના પૂર્વભવના મૃત શરીરની અસુરકુમારે દ્વારા रायसी शिनी वात न्यारे तेभो tell) त्यारे “सोचा निसम्म" ते पात सालणाने तथा ते विष मनमा विया२ ४शने "आसुरुते" तमना धन पार न ना "जाव मिसिमसेमाणा" सत्यत धावेशन सीधे तेभाना 318 van evil, तेमा दांत ४ययावा या मही "जाव" पहथी "कुपित, चण्डकित" पहाना सड थये। छ. वे धावेशमा शानेन्द्र शु यु ते सूत्र४२ मताव छ " तत्थेव सयणिज्जवरगए तिवलियं मिउडि निडाले साहट्ट" त्या पोतानी शैय्या ५२ બેઠાં બેઠાં તેમણે એવી તે બ્રકુટિ ચડાવી કે તેમના લલાટ પર ત્રણ રેખાઓ ઉપસી આવી. (આ સત્ર દ્વારા તેમને અતિશય ઠંધાવેશ પ્રકટ કર્યો છે) આ રીતે તેમણે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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