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________________ २६० भगवतीसूत्रे सा बलिचञ्चाराजधानी ईशानेन देवेन्द्रेण, देवराजेन अधः सपक्षम् सपतिदिशि समभिलोकिता सती तेन दिव्यप्रभावेण अङ्गारभूता, मुम्मुरभूता, भस्मीभूता, तप्तकटाहकभूता, तप्ता समज्योतिर्भूता जाता चापि अभवत्, ततस्ते बलिचञ्चाराजधानीवास्तव्या बहवोऽसुरकुमाराः देवाश्च देव्यश्च तां बलिचञ्चाराजधानीम् अङ्गारभूताम् , यावत्-समज्योतिभूताम् , पश्यन्ति, दृष्ट्वा भीताः, त्रस्ताः, शुष्काः, चंचारायहाणि अहे सपक्खि सपडिदिसिं समभिलोएइ) उसने बलिचंचा राजधानी को नीचे में, चारों दिशाओं में और विदिशाओ में देखा । (तएणं सा बलिचचा रायहाणी ईसाणेणं देविंदेणं देवरन्ना अहे सपक्खि सपडिदिसिं समभिलोइया समाणी) इस प्रकार क्रोधावेश से देवेन्द्र, देवराज, ईशानके द्वारा नीचे-सामने-चारों दिशाओमें एवं चारोंही विदिशाओंमें देखी गई वह वलिचंचाराजधानी ( तेणं दिव्यप्पभावेणे इंगालब्भूया) इन्द्र के उष्ण तेजोलेश्यारूप उस प्रभाव से उसी समय अंगारे जैसी हो गई (मुम्मुरब्भूया) तुषाग्नि के जैसी हो गई (छारियभूया) राख जैसी हो गई (तत्तकबेलुकभूया) तपी हुई कडाही जैसी हो गई (तत्ता) साक्षात् अग्नि जैसी हो गई । (समजोइन्भूया) एक सी ज्योति जैसी हो गई । (तएणं ते बलिच'चा रायहाणि वत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य तं बलिचंचारायहाणिं इंगालब्भूयं जाव समजोइन्भूयं पासंति) इसके बाद बलिचंचा राजधानी के निवासी उन अनेक असुरकुमार देवोंने और देवियोंने जब उस बलिचचाराजधानीको अंगारे जैसी यावत् एकसी हिसायमा भने सारे मुशायामा न०४२ नाभी. (तएणं सा बलिचचा रायहाणी ईसाणेणं देविदेणं देवरना अहे सपक्खि सपडिदिसिं समभिलोइया समाणी) આ રીતે જ્યારે દેવેન્દ્ર દેવરાજ ઈશાને ક્રોધાવેશથી જ્યારે બલિચંચા રાધાનીની નીચે, न्यारे हिशाये तथा यारे मूछ लेयु त्यारे ( तेणं दिव्यप्पभावेणं इंगालब्भूया ) તે બલિચંચા રાજધાની, ઈશાનેન્દ્રના તેજલેશ્યાના દિવ્ય પ્રભાવથી એજ સમયે અંગારા 24 मनी ४ (मुम्मुरब्भूया) तुषानि (योमाना शत अथवा मना न भूसुं साथी प्रगटता मनि) वी थ६. (छारियभूया) २५ वी ५४ ४. (तत्तकवेलुकब्भूया) तत ताप वा थ/ 8. (तत्ता) साक्षात् मनिव था (समजोइन्भूया) मेधा! याति समान ४ . (तएणं ते बलिचचारायहाणिवस्थव्वया बहबे असुर कुमार देवा य देवीओ य तं बलिचंचा रायहाणि इंगालब्भूय जाव समनोइन्भूयं पासंति) ते मलिया यानीमा पसना२। सने અસુરકુમાર દેવો અને દેવિયાએ જયારે તે બલિચંચા રાજધાનીને અંગારા જેવી, श्री भगवती सूत्र : 3
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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