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________________ प्रमेयचन्किाटीका श. ३. उ. १ ईशानेन्द्रस्य दिव्यदेवऋद्धिनिरूपणम् १५७ दिता तथेह ईशानेन्द्रस्य बोध्या, वक्तव्यताया अवधिमाह-'जाव दिव्वं देविडि' यावद् दिव्यां देवर्द्धिम् विकुर्वति, यावत्करणात् इदं सूच्यते यत् 'दिव्यं देवज्जुई दिव्वं देवाणुभाव पडिसाहरइ, पडिसाहरित्ता खणेणं जाए एगभूए, तएणं ईसाणे देविंदे, देवराया समणं भगवं महावीरंवदइ, नमसइ, वंदित्ता, नमंसित्ता णियग परियालसंपरिबुडे ' ति! छाया- दिव्यां देवद्युतिम् , दिव्यं देवानुभावं प्रतिसंहरति, प्रतिसंहृत्य क्षणेन जातः एकभूतः-तदा ईशानः देवेन्द्रः, देवराजः श्रमणं भगवन्तं महावीर वन्दित्वा नमस्यित्वा निजकपरिवारसंपरितः।। एतत्प्रकरणस्य संक्षेपार्थोऽयम् यत् ससुधर्मासभायाम् , ईशाने सिंहासने अशीतिसहस्रसामानिकैः चतुर्मिलॊकपालैः, अष्टभिः सपरिवारपट्टमहिषीभिः सप्तभिरनीकैः सप्तसेनाधिपतिभिः, विंशतिसहस्राधिकलक्षत्रयात्मरक्षकदेवैरन्यदेवभदेव की वक्तव्यता प्रतिपादिक की गई है उसी तरह से ईशानेन्द्रकी वक्तव्यता जाननी चाहिये। यह वक्तव्यता यहां कहां तक ग्रहण करना चाहिये तो इसके लिये कहा गया है 'जावदिव्वं देविड्डी यहां तक की ग्रहण करना चाहिये । यहां जो यावत् पद आया है उससे 'दिव्वं देवज्जुइ, दिब्वं देवाणुभावं पडिसाहरइ, पडिसाहरित्ता खणेणंजाए एगभूए, तएणं ईसाणे देविंदे देवराया समणं भगवं महावीर वंदह नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता णियगपरिपालसंपरिवुडे त्ति' इस पाठका सूचन किया गया है। इस प्रकरणका संक्षेप अर्थ इस प्रकार से है-सुधर्मा सभामें ईशान नामके सिंहासन पर ८० अस्सी हजार सामानिक देवों, चार लोकपालों, आठ परिवार सहित अग्रमहिषियों, सात अनीकाओं, सात अनीकाधिपतियों, ३ लाख २० हजार आत्मरक्षदेवों और अन्य देव देवियों के साथ रहता नु पर्यन मी ४२ मे. "जाव दिव्वंदेविडी" ५यन्त ते वर्णन अडए ४२j मे. ही रे "जाव (यावत)" ५४ माव्यु छ तथा नायने। सूत्रपा४ अंडर राय छ- "दिव्यं देवज्जुई, दिळां देवाणुभावं पडिसाहरड, पडिसाहरित्ता खणेणं जाए एगभूए, तएणं ईसाणे देविंदे देवराया समणं भगवं महावीर वंद्इ नमसइ वंदित्ता नमंसिता णियगपरिपालसंपरिखुडे ति" मा ५४२(युने। ટુંક સારાંશ નીચે પ્રમાણે છે–સુધર્મા સભામાં ઈશાન નામના સિંહાસન પર ૮૦૦૦૦ એંસી હજાર સામાનિક દે, ચાર લેકપાલે, પરિવાર સહિત આઠ પટ્ટરાણુઓ, સાત સેનાઓ, સાત સેનાપતિઓ, ત્રણ લાખ વીસ હજાર આત્મરક્ષક દેવ અને અન્ય દેવ દેવિયેની શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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