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भगवतिसूत्रे पतिः ‘अट्ठावीसविमाणावाससयसहस्साहिवइ' अष्टाविंशतिलक्षसंख्यकविमानावासाधिपतिः 'अरयंवरवत्थधरे' अरजोऽम्बरवस्त्रधरः निर्मलाऽऽकाशवदम्बरधरः स्वच्छवस्त्रं परिदधानः 'आलइय मालमउडे' आलगितमालमुकुटः मालालकृतमौलिमुकुटः 'नवहेमचारुचित्तचञ्चलकुंडलविलिहि जमाणगंडे, नूतनरुचिरसुवर्णविचित्रचश्चलकुण्डलपरिलसितकपोलः 'जाव - दस दिसाओ' यावत् इति साकल्येन दश दिशाः 'उज्जोवेमाणे' स्वद्युत्या उद्योतयन् 'पाभासेमाणे स्वभासा प्रभासयन् प्रकाशयन् 'ईसाणे' कप्पे ईशाने कल्पे 'ईसाणवडिसए' ईशानावतंसके 'विमाणे विमाने आरूढः 'जहेव' यथैव 'रायप्पसेणइज्जे राजप्रश्नीये (राजप्रदेशीये) यथा राजप्रश्नीयसूत्रे सूर्याभदेवस्य वक्तव्यता प्रतिपा'अट्ठावीसधिमाणावाससयसहस्साहिवई २८ अठाईस लाख विमानों के ऊपर इसका एकाधिपत्य था। 'अरयंबरवत्थधरे निर्मल आकाशकी तरह स्वच्छवस्त्रोंको यह पहिरे हुए था । आलइयमालमउडे' इसने जो मस्तक के ऊपर मुकुट धारण कर रखा था वह मालाओं से युक्त था। नवहेमचारचित्तचंचलकुंडलविलिहिज्जमाणगंडे' इसके जो दोनों गाथ थे वे नवीन सुवर्ण के बने हुए विचित्र चञ्चल कुडलो से विशेष शोभित हो रहे थे । 'जाव दसदिसाओ' वह अपनी कान्ति से समस्त रूप से दश दिशाओंको उद्योगयुक्त बना रहा था। 'पभासे माणे' अपनी प्रभा से वह उन्हे चमका रहा था। ऐसा वह ईशानेन्द्र 'ईसाणे' ईशानकल्पमें 'ईसाणवडिसए' ईशानावतंसक विमान में आरूढ होकर प्रभु की वंदना को आया 'जहेव' जैसा 'रायप्पसेणइज्जे' राजप्रश्नीय में (राजप्रदेशीय में) राजप्रश्नीय सूत्र में सूर्याते अधिपति तो "अरयंबरवत्थधरे" निभ' Ani Rai २१२७ वस्त्रो तेणे धारण ज्या तi. "श्रालयमालमउडे तो मा ५२ परे। भुगट भागामाथी युत ता "नव हेमचारुचित्तचंचलकुंडलविलिहिज्जमाणगंडे " नवीन સુવર્ણમાંથી બનાવેલાં સુંદર વિચિત્ર કુંડળના ડોલનથી તેના બંને ગાલ શોભતા હતા. "जाव दसदिसाओ" पोतानी ४न्ति पते से दिशामाने प्रशित तो तो. "पभासेमाणे" तेनी प्रमाथी से मिहीप्यमान मनती ती. मे ते ४नेन्द्र "ईसाणे" शान aasu "ईसाणवडिसए" ध्यानात स नामना विमान भासाने प्रभुने । ४२१। माव्य.. "जहेव रायपसेणइज्जे" नीय (રાજપ્રદેશીય સૂત્રમાં) સૂર્યાભદેવનું જેવું વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે, એવુંજ ઈશાનેન્દ્ર
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩