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________________ १४८ भगवतीसूत्रे समृद्धयादिकं पूर्वदेववदेव, किन्तु पूर्व देवापेक्षया अधिकवैक्रियरूपनिर्माणद्वारा द्वात्रिंशत्संख्यकान् सम्पूर्णान् जम्बूद्वीपान् व्याप्तुं स समर्थ इत्याह-'नवरं 'बत्तीस केवल *.प्पे' त्ति । ‘एवं' तथैव 'अच्चुएवि' अच्युतेऽपि समृद्धयादिकं विज्ञेयम् , 'नवरं' विशेषः पुनरेतावानेव यत् ‘सातिरेगे' सातिरेकान् सारिकान 'बत्तीसं' द्वात्रिंशत्संख्यकान् ‘केवलकप्पे' केवलकल्पान् सम्पूर्णान् 'जम्बूद्वीपनामकद्वीपान् पूरयितुं समर्थ इति सर्वातिशायिनी अस्य विकुर्वणाशक्तिस्ति 'अणं तंचेव' अन्यत्पुनः सर्वतदेव पूर्व वदेव ज्ञातव्यम् । इदमत्र तच्चम्-शक्रेन्द्रादारभ्य अच्युतेन्द्रपर्यन्तेषु दशसु देवेन्द्रेषु शक्रादिकान् एकैकान्तरितान् पश्च दक्षिणार्धलोकाधिपतिदेवेन्द्रान् अग्निभूतिः भगवन्तं पृष्टवान् , ईशानादिभी पूर्वकी तरह ही समृद्धयादिकका संबंध है परन्तु यहां पूर्वदेवोंकी अपेक्षा अधिक वैक्रियरूप निर्माणद्वारा ३२बत्तीस जंबूद्रोपोंका संपूर्णरूपसे भर सकनेकी शक्ति है । यही बात 'बत्तीस केवलकप्पे' इस पाठ द्वारा प्रदर्शित की गई है। 'अच्चुए वि एवं' अच्युतमें भी समृ. द्धयादिक सब बाते पूर्वकी तरहसे ही जानना चाहिये। परन्तु इनकी विकुणाशक्तिमें जो अन्तर है वह 'सातिरेगे पत्तीस केवलकप्पे जंबूदीवे दीवे' इस प्रकारसे है कि ये अपनी चिकुर्वणाशक्तिसे निर्मित नानारूपोंद्वारा कुछ अधिक ३२ बत्तीस जंबूद्वीपोंको पूर्णरूपसे भर सकते हैं। इस तरह अच्युतकी विकुर्वणाशक्ति सबसे अधिक है । 'अण्णं तंचेव' बाकीका और सब कथन पहिले की तरह से ही जानना चाहिये। यहां तात्पर्य ऐसा है- शक्रेन्द्रसे लेकर अच्युत पर्यन्त दश देवेन्द्रों में से एकान्तरित पांच दक्षिणार्धलोकाधिपति देवेन्द्रोंके संबंधों "एवं पाणए वि" प्रात ४६५ना न्द्रनी समृद्धि माहिना विषयमा ५५ मेमर सभा. "नवरं बत्तीसं केवलकप्पे" ५५ ते तेनी विq शस्तिया निमित ३१.१3 3२त्रीसदीपोटी च्याने मरीश छ "अच्चए वि एवं" भव्युत દેવલોકના ઈન્દ્ર આદિની સમૃદ્ધિનું વર્ણન આગળ મુજબ સમજવું પણ તેમની विया Aliwi नीचे प्रमाण विशेषता छ- “सातिरेगे बत्तीस केवलकप्पे जंवृदीवे दीवे" ते तेभनी पिए। तिया निमित विविध वैयि ३५॥ 43 બત્રીશ જ બૂદ્વીપ કરતાં પણ વધારે જગ્યાને ભરી શકવાને સમર્થ છે. આ રીતે भयुत ४६५वासी योनी विएशत सोथी वधारे छ. "अण्णं तंचेव" બાકીનું સમસ્ત કથન આગળ મુજબ સમજવું. શકેન્દ્રથી શરુ કરીને અયુત સુધીના દસ દેવેન્દ્રોમાંના પાંચ દક્ષિણાર્ધ લેકાધિપતિ દેવેન્દ્રો વિષે અગ્નિભૂતિએ મહાવીર શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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