SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवतीमत्रे शरीरैः 'अट्ट' अष्टौ · केवलकप्पे' केवलकल्पान संपूर्णान् जम्बूद्वीपान् व्याप्तुं समर्थाः। ‘एवं' तथैव 'लंतएवि' लांतकेऽपि बोध्यम् , एतावता लान्तकदेवोऽपि पूर्व वदेव समृद्धयादिशाली स्वसामोनिकादिदेवोपरि स्वसत्ताधिपत्यादिकं कुर्वन् दिव्यान भोगान् भुञ्जानो विहरति, एवं तदीयसामानिकादिदेवा अपि बोध्याः , केवलं 'नवरं' विशेषता तु तस्य पूर्व देवापेक्षया इयमेव यत् 'सातिरेगे' सातिरेकान् साधिकान् 'अट्ठकेवलकप्पे' अष्टौ केवलकल्पान् जम्बूद्वीपान् पूरयितुं विकुर्वणाशक्त्या वैक्रियनिजात्मविविधरूपनिर्माणसमर्थः । एवं — महामुक्के' महाशुक्रेऽपि पूर्ववदेव बोध्यम् , अर्थात् महाशुक्रदेवस्यापि तदीयसामानिकादेश्व निक आदि देव 'अट्ठकेवलकप्पे अपनी विकुर्वणा शक्ति से निष्पन्न अनेकरूपों द्वारा आठ जंबूद्वीप जैसे विस्तृत स्थान को पूर्णरूपसे भर सकते हैं । 'एवं लंतए वि' इसी तरह लान्तक देवलोकवामी इन्द्र उसके सामानिक देव आदि सब ही पहिले की तरहसे ही समृद्धि आदिशाली हैं । वह लान्तक इन्द्र अपने सामानिक देव आदिके ऊपर स्वाधिपत्यादिक करता हुआ दिव्य भोगोको भोगता रहता है। परन्तु इसकी विकुर्वणा शक्तिका क्षेत्र पहिले के देवादिकों की अपेक्षा कुछ अधिक आठ जंबूद्वीपों को भर सकते हैं यही बात 'नवरं अट्ठकेवलकप्पे' इस सूत्र पाठ द्वारा प्रकट की गई हैं । तथा 'महासुक्के सोलस केवलकप्पे' इस सूत्र पाठ द्वारा यह प्रदर्शित किया गया हैं कि महाशुक्र देवकी और उसके सामानिक देव आदिकों की समृद्धि आदिक सब पहिले की २ विशेषता छ त नये प्रमाण छ- "अटकेवलकप्पे" प्रसनन्द्र तथा तना સામાનિક આદિ દેવે વિમુર્વણ શકિતથી નિર્મિત વિવિધ રૂપે વડે પૂરા આઠ ४ मुद्धामा स्थानने म २४वाने समय छे. "एवं लंतए वि" सान्त१લકનો ઈન્દ્ર તથા તેના સામાનિક આદિ દેવે પણ એટલી જ સમૃદ્ધિશાળી છે. તે લાતક દેવકને ઇન્દ્ર તેના સામાનિક આદિ દેવે પર આધિપત્ય, સ્વામીત્વ આદિ ભગવતે થકે, અનેક દિવ્ય ભેગો ભેગવ્યા કરે છે. બ્રહ્મલેકના ઇન્દ્ર કરતા લાન્તકના ઈન્દ્રની વિકૃર્વણું શકિતમાં જે વિશેષતા છે તે નીચેના સૂત્રમાં પ્રકટ કરી છે"नवरं सातिरेगे अट्ट केवलकप्पे" alras Rasने छन्द्र तथा तेन सामानि આદિ દેવો તેમની વિક્વણુ શકિતથી નિમિત રૂપે વડે આઠ જંબુદ્વીપ કરતાં પણ १धारे याने मरी २४ाने समर्थ छे. " महामुक्के सोलसकेवलकप्पे " મહાશુક્ર દેવલોકના ઈન્દ્ર તથા તેના સામાનિક આદિ દેવો પણ એટલા જ સમૃદ્ધિશાળી श्री भगवती सूत्र : 3
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy