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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ३ उ. १ सनत्कुमारदेवऋद्धिनिरूपणम् १४१ तरं च णं तिरियमसंखेजे' अथोत्तरश्च तिर्यगसंख्येयान् द्वीपसमुद्रान वैक्रियरूपैःपूरयितुं तस्य सामर्थ्यमित्याशयः। तदीयसामानिकादिदेवानामपि विकुर्वणाशक्त्या निष्पादितनानारूपैः असंख्येयान् द्वीपसमुद्रान् व्याप्तुं सामर्थ्य मित्याह-'एवं सामाणिय-तायत्तीस-लोगपालाग्गम हिसीणं' इत्यादि ! एनं तथैव पूर्ववदेव सामानिक-त्रायस्त्रिंशक-अग्रमहिषीणाम् , मध्ये एकैकः इति शेषः, 'असंखेज्जे' असंख्येयान् 'दीवसमुद्दे' द्वीपसमुद्रान् 'सव्वे' सर्वान् सम्पूर्णान् इतिभावः, विकुव्वंति, विकुर्वणाशक्त्या निमितवैक्रियरूपैः व्याप्तुं शक्नोति । 'सणंकुमाराओ' सनत्कुमारात् 'आरद्धा' आरब्धाः सनत्कुमारमारभ्य 'उवरिल्ला' उपरितनाः 'लोगपाला' लोकपालाः 'सव्वेवि' सर्वेऽपि 'असंखेज्जे' असंख्येयान् सामर्थ्यातिशय है इस बात को सूत्रकारने 'अदुत्तरं च णं तिरियमसंखेज्जे' इस सूत्र पाठ से प्रकट किया है-इसका तात्पर्य यह है कि यह तिरछे रूप में असंख्यात द्वीप समुद्रों को अपने वैक्रियरूपों द्वारा भर सकनेके लिये समर्थ है । इसी तरह की शक्ति इसके सामानिक देव आदिकों में भी हैं यह बात ‘एवं सामाणिय तायत्तीस लोगपालग्ग महिसीणं' इत्यादि सूत्रद्वारा मूत्रकारने प्रकट की है । जिस प्रकार सनत्कुमार अपनी विकुर्वणा शक्ति से निर्मित वैक्रियरूपों द्वारा असंख्यातद्वीप समुद्रोंको भर सकता है उसी प्रकार से इसके सामानिक ब्रायस्त्रिंशक देवों में से और अग्रमहिषियों में से एक २ देव और देवी असंख्यात२ द्वीप समुद्रों को अपनी विकुर्वणा शक्तिसे निर्मित वैक्रियरूपों द्वारा भर सकती है । 'सर्णकुमाराओ आरद्धा' सनत्कुमार से लगाकर 'उवरिल्ला' ऊपर के 'सव्वे' समस्त 'लोगपाला' लोकपाल सूत्रद्वारा मताव्यु छ- " अदुत्तरं च णं तिरियमसंखेज्जे " ते तियोsal અસંખ્યાત દ્વીપ સમુદ્રોને પિતાનાં વૈક્રિય રૂપ વડે ભરી શકવાને સમર્થ છે, એ જ પ્રકારની શક્તિ તેમના સામાનિક દેવ આદિમાં પણ છે, એ વાત નીચેના સૂત્ર દ્વારા ५४८ ४३छ- "एवं सामाणिय, तायत्तीस, लोगपालग्गमहिसीणं" वा शत સનકુમાર તેમની વક્રિય શક્તિથી નિર્મિત વૈક્રિયરૂપે વડે અસંખ્યાત દ્વીપ સમુદ્રોને ભરી શકે છે, એવી રીતે તેમના સામાનિક દે, ત્રાયશ્ચિશક દે, લોકપાલ અને અગ્નમહિષીઓ (પટ્ટરાણીઓ) પણ વૈક્રિયરૂપે વડે અસંખ્યાત દ્વિપસમુદ્રોને ભરી शवाने समर्थ छ. "सणंकुमाराओ आरद्धा" सनामारथी बने. उवरिल्ला' तभनी ५२ना मधi "सन्वे लोगपाला" alsuld "असंखेज्जे दीवसमु" શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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