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________________ १४० भगवतीसूत्रे देवराजः किंमहर्द्धिकः, कियच्च प्रभुर्विकुर्वितुम् ? गौतम ! सनत्कुमारो देवेन्द्रः, देवराजो महर्द्धिकः, स द्वादशानां विमानावासशतसाहस्रीणाम् , द्वासप्ततीनाम् सामानिकसाहस्रीणाम्-इति, यावत्-चतसृणां द्वासप्ततीनाम् आत्मरक्षकदेवसाहस्रीणाम् , इत्यादि । सनत्कुमारो देवेन्द्रः अपूर्वसमृद्धिशाली द्वादशशतसहस्रविमानावास-द्वासप्ततिसहस्रसामानिकदेव - अष्टाशीतिसहस्राधिकलक्षद्वयात्मरक्षक देवानामुपरि स्वाधिपत्यादिकं कुर्वन् दिव्यान् भोगान् भुञ्जानो विहरति, इत्यादि पूर्ववदेव बोध्यम् 'नवरं' विशेषस्तु एतावानेव यत् स विकुर्वणाशक्त्या वैक्रियसमुद् घातेन नानारूपनिर्माणद्वारा 'चत्तारि' चतुरः 'केवलकप्पे' केवल कल्पान जंबूदीवे दीवे 'जंबूद्वीपान द्वीपान सम्पूर्णान चतुरो जम्बूद्वीपनामकद्वीपान पूरयितुं समर्थः, इति भावः । पुनस्तस्य पूर्वदेवापेक्षया सामर्थ्यातिशयं प्रतिपादयति-'अदुसाहस्सीणं" इत्यादि, इसका अर्थ इस प्रकार से है-हे भदन्त ! देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार कितनी बडी ऋद्धिवाला है और वह कितनी चिकुर्वणा शक्ति करने में समर्थ है ? तो इसका उत्तर यह है कि हे गौतम ! वह देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार बहुत बडी ऋद्धिवाला है जैसे वह १२ बारह लाख विमानोंके, ७२ बहत्तर हजार सामानिक देवोंके, और २दो लाख ८८ अठासी हजार आत्मरक्षक देवोंके ऊपर आधिपत्य आदि करता हुआ दिव्य भोगोंको भोगता रहता है इत्यादि सब कथन पहिलेकी तरहसे ही जानना चाहिये । परन्तु पहिले के कथनमें और इससे संबंधित कथन में जो भेद है वह 'नवरं' पद से सूत्रकार ने प्रकट किया हैंजो इस प्रकार से है-'चत्तारि-केवलकप्पे जंबूदीवे दीवे' यह सनत्कुमार अपने विकुर्वणा शक्ति से नानारूपो के निर्माणद्वारा सम्पूर्ण चार जंबू द्वीपों को भर सकता हैं। तथा पूर्व देवों की अपेक्षा इसमें और क्या त्तरीणं आयरक्खदेवसाहम्साणं" गौतम! हेवेन्द्र, ३१२० सनभा२ upl ભારે સમૃદ્ધિવાળે છે. તે બાર લાખ વિમાન, ૭૨ બેતેર હજાર સામાનિક દે, અને ૨૮૮૦૦૦ એલાખ અઠયાસી હજાર આત્મરક્ષક દેવ પર આધિપત્ય આદિ ભાગવત થકે દિવ્ય ભેગોને ઉપભેગ કરે છે ઈત્યાદિ સમસ્ત કથન આગળ મુજબ સમજવું. " नवरं " ५४ पडेain थनमा विशेषता छे ते नाय प्रमाणे सभी . "चतारि केवलकप्पे जंबूदावे दावे" सनाभा२ तेमनी वि तिथी ઉત્પન્ન કરેલાં વિવિધ રૂપ વડે પુરે પુરા ચાર જ બૂદ્વાપને ભરી શકવાને સમર્થ છે. તથા આગળ વર્ણવેલા દે કરતાં તેમનામાં કેટલું વધુ સામ છે તે સૂત્રકારે નીચેના श्री भगवती सूत्र : 3
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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