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________________ भगवतीमूत्रे 'दीवसमुद्दे' द्वीपसमुद्रान् 'विकुव्वंति' विकुर्वन्ति, विकुर्वणया व्याप्नुवन्ति, यद्यपि सनत्कुमारलोके देवीनामुद्भवो नास्ति तथापि सौधर्मलोकोत्पन्नाः समयाधिकपल्योपमादिदशपल्योपमान्तस्थितिशालिन्योऽपरिगृहोतदेव्य एव सनत्कुमारदेवानां भोगाय सम्पद्यन्ते इत्याशयेनोक्तम् - अग्रमहिष्य इति । 'एवं' तथैव पूर्ववदेव 'माहिंदेवि' माहेन्द्रेऽपि माहेन्द्रलोकेऽपि बोध्यम् , तल्लोकवासो देवोऽपि माहेन्द्रपदेनोच्यते, तथाच 'एवं माहिंदे वि' इतिसूत्रेण अधस्तनी गाथा मुच्यते-"बत्तीस अट्ठावीसा बारस अट्ठचउरो सयसहस्सा, आरणे बंभलोया 'असंखेज्जे दीवसमुद्दे' असंख्यात द्वीप समुद्रोंको अपनी२ विकुर्वणासे भर सकते हैं । यद्यपि सनत्कुमार देवलोकमें देवियोंकी उत्पत्ति नहीं होती है क्योंकि दूसरे देवलोकतक ही देवियों का उत्पाद होना सि. द्वान्तमें प्रकट किया गया है, तो भी सौधर्म देवलोकोत्पन्न देवियांकि जिनकी स्थिति १ एक समय अधिक वाले पल्योपम से लगाकर दस १० पल्योपम तक की है और अभीतक जिन्होंने किसी के साथ सम्बन्ध नहीं किया है-अर्थात्-किसी देवादि की जो अभीतक अर्धाङ्गिनी नहीं बनी हैं ऐसी देवियां ही सनत्कुमारदेवों के भोगने में काम आती हैं-इसी आशय को सूचित करने के लिये ‘अग्रहिषी' ऐसा सूत्र में कहा गया है । एवं माहिदेवि' इसी तरह से माहेन्द्र देवलोक में भी जानना चाहिये । माहेन्द्रदेवलोक वासी देव भी माहेन्द्रपद के वाच्य होते हैं। तथा च ' एवं माहिंदे वि' इस सूत्रद्वारा नीचे की यह गाथा सूचित की गई हैं-"वत्तीस अट्ठावीसा बारस अट्टचउरोઅસંખ્યાત દ્વીપ સમુદ્રોને તેમની વિકુણાશક્તિ દ્વારા નિર્મિત કૅક્રિય રૂપથી ભરી દઈ શકે છે. જો કે સનસ્કુમાર દેવલોકમાં દેવિયેની ઉત્પત્તિ થતી નથી, કારણ કે સિદ્ધાંતમાં એવું લખ્યું છે કે બીજા દેવલેક સુધી જ દેવિયેની ઉત્પત્તિ થાય છે, તે પણ સૌધર્મ દેવલોકમાં ઉત્પન્ન થયેલી દેવિ કે જેમની સ્થિતિ એક સમય અધિકવાળા પાપમથી લઈને દસ પત્યે પમ સુધીની હોય છે અને જેમણે હજી સુધી કોઈની પણ સાથે સંબંધ જોડે નથી- એટલે કે કઈ પણ દેવની હજી સુધી જે અર્ધગના બની ન હોય એવી દેવિયેને જ સનસ્કુમાર દે ઉપભેગ કરે છે. એ જ माशयतुं सूयन ४२वा माटे "अनमहिषी" ५६ने प्रयोग ये छे. 'एवं माहिंदेवि મહેન્દ્ર દેવલોકના દેના વિષયમાં પણ એમ જ સમજવું. “મહેન્દ્ર પદ માહેન્દ્ર वसमा रहुता वोर्नु पाय छ भने "एवं महिंदे वि." सूत्र द्वारा नायनी ॥था सूथित ४२१ामा भावी छ- “वत्तीस अट्ठावीसो बारस अट्टचउरो सयसहस्सा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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