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________________ भगवतीसूत्रे ९८२ पंचाशद् योजनसहस्राणि पञ्च च सप्तनवतिश्च योजनशतानि किञ्चिद् विशेषोनम् परिक्षेपेण सर्वप्रमाणं वैमानिकप्रमाणस्यार्धं ज्ञातव्यम् ॥ मु०१ ॥ 46 " टीका - " कहि णं भंते " कुत्र खलु भदन्त ! चमरस्त असुरिंदस्स चमरस्याऽसुरेन्द्रस्य इन्द्रत्वं च साधरण - ईश्वरतामात्रेणापि संभवति इत्यत आह66 असुरकुमाररण्णो " असुरकुमार राजस्य असुरकुमाराणां राजा इति असुरकुमारराजस्तस्य "सभा सुहम्मा पण्णत्ता सभा सुधर्मा प्रज्ञप्ता, हे देवानुप्रिय ! असुरकुमारराजस्य चमरेन्द्रस्य सुधर्मा सभा कुत्रस्थाने विद्यते इति गौतमस्य प्रश्नः भगवामाह- गोयमा " इत्यादि गोयमा " हे गौतम ! जंबूदी दीवे जबूद्वीपे द्वीपे मध्यजंबूद्वीपे "मंदरस्स पन्चयस्स" मन्दरस्य पर्वतस्य मेरुपर्वतस्य " दाहिणेण " दक्षिणेन ' तिरियमसंखेज्जे ' तिर्यग संख्येयान् " दीवसमुद्दे वी - 66 (6 66 " 37 स अर्द्धनेयवं ) उपरितल दरवाजों के उपर के भाग का आयाम और विष्कंभ लंबाई और चौडाई सोलह हजार योजन का है, इसका परिक्षेप कुछ कम पचास हजार पांच सौ संतानवे ५०५९७ योजन का है । सर्व प्रमाण से, वैमानिक के प्रमाण की अपेक्षा यहाँ सब विषय आधा जानना चाहिये ।। सू-१ ।। टीकार्थ - गौतमस्वामी प्रभु से पूछते हैं - (कहि णं भंते ! असुरिंदस्स असुर कुमाररण्णो चमरस्स सभा सुहम्मा पण्णत्ता) हे भदन्त ! असुरकुमारों के राजा असुरेन्द्र चमर की सुधर्मा सभा कहां पर कही गई है ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं कि ( गोयमा !) हे गौतम! असुर कुमार राज, चरमेन्द्र की सुधर्मा सभा (जंबूदीवे दीवे) जम्बूद्वीप नाम के मध्य जम्बूद्वीप में, (मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं) उस मेरू पर्वत नियमाणस्स अद्धं नेयव्व ) उपरितलनी ( हरवालना उपरना लागनी ) લ’ખાઈ અને પહેાળાઇ સાળ હજાર યેાજનની છે અને તેને પરિક્ષેપ (પરિમિતિ પંચાસ હજાર પાંચસે સત્તાણુ. ચૈાજનથી કંઇક એ છે, વૈમાનિકામાં જે જે પ્રમાણા કહ્યાં છે તેના કરતાં અહીં દરેક પ્રમાણુ અર્ધા સમજવા સૂ ૧૫ टीडार्थ — गौतम स्वाभी महावीर अलुने पूछे छे ( कहि ण भंते असुरिंदरस असुरकुमाररण्णो चमरस्स सभा सुरम्मा पण्णत्ता ? ) डे लहन्त ? અસુરકુમારેાના રાજા અસુરેન્દ્ર ચમરની સુધર્માંસભા કયાં આવેલી છે? આ પ્રશ્નના જવાખ આપતા. મહાવીર પ્રભુ ગૌતમ સ્વામીને કહે છે કે હે ગૌતમ मसुरङ्कुभाशना रान्न यभरेन्द्रनी सुधर्मा सला (जंबूदीवे दीवे) यूद्वीप नामना द्वीपमां आवेली छे. (मंदररस पव्वयस्स दाहिणेण ) ते मेरु पर्वतनी શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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