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________________ ममेयचन्द्रिका टीका श०२ उ०८ सू०१ चमरेन्द्रस्य सुधर्मासभादिनिरूपणम् ९८३ वइता" द्वीपसमुद्रान् व्यतित्रज्य. उल्लंध्येत्यर्थः 'अरुणवरस्स दीवस्स" अरुणवरस्य द्वीपस्य “वाहिरिल्लाओ वेइयंताओ" बाह्याद् वेदिकान्तात् अरुणवरद्वीपस्य निष्क्रमणानन्तरम् " अरुणोदयं समुई " अरुणोदय समुद्रम् " बायालीसंजोयण सहस्साई " द्विचत्वारिंशत् योजन सहस्राणि “ ओगाहित्ता" अवगाह्य समुद्रजलोपरिभागमतिक्रम्य -- द्विचत्वारिंशद् योजनसहस्राणि उपयुपरिगत्वेत्यर्थः । " एत्थण चमरस्स असुरिन्दस्स असुरकुमाररणो” अत्र खलु चमरस्याऽसुरेन्द्र.. स्याऽसुरकुमारराजस्य “ तिगिच्छकूडे नामं उप्पायपबए पन्नत्ते" तिगिच्छक्टो की दक्षिण दिशामें (तिरियमसंखिजे दीवसमुद्दे वीइवइत्ता) तिरछे असंख्यात द्वीप समुद्रों को लांघने पर (अरुणवरस्स दीवस्स) अरूणवर नाम का एक द्वीप है । द्वीप का जैसा नाम है उस द्वीप को घेरे हुए समुद्र का भी अढाई द्वीप के बाहिर वही नाम होता है । द्वीप और द्वीप के बाद समुद्र हैं। अतः जंबूद्वीपस्थित मेरु पर्वत से दक्षिण की ओर तिरछे असंख्यात द्वीप समुद्रों को पार करने पर अरुणवर नाम का दीप आता है। इस द्वीप के चारो तरफ समुद्र है-जिसका नाम अरुणोदय समुद्र है। यही बात (बाहिरिल्ला ओवेइयंताओ अरुणोदयं समुदं यायालीसं जोयणसयसहस्साई) इस सूत्र पाठ द्वारा प्रकट की गई है। अर्थात-अरुणवर दीप की जो वेदिका जगती है उसके बाहिरी अन्तिम छोड से आगे बढ़ने पर अरुणोदय नामका समुद्र आता है। इस समुद्र में क्यालीसहजार योजन ( ओगाहित्ता ) समुद्र के उपरितल के लांघने पर (एव्य णं चमरस्स अस्सुरिंदस्स असुरकुमाररण्णोतिगिच्छकूडे नाम उप्पा यपव्यए पण्णत्ते ) ठीक वहीं असुर कुमारराजचमरेन्द्र का उत्पातपर्वत हिमा ( तिरियमसंखिज्जे दीवसमुहे वीइवइता) ती२७२२ भ्य द्वीय सागवाथी. ( अरुणवरस्स दीवस्स ) १२४१२ नामनी से दी५ मा छे. દ્વીપનું જે નામ છે, એજ નામ દ્વીપને ઘેરીને આવેલા અઢી દ્વીપની બહારના સમુદ્રનું પણ છે, દ્વીપ અને દ્વીપની પછી સમુદ્ર છે. એટલેકે જંબદ્વીપમાં આવેલા મેરુ પર્વતની દક્ષિણ તરફ તીરછા અસંખ્યાત દ્વીપસમુદ્રોને પાર કરવાથી અણવર નામને દ્વીપ આવે છે. તે દ્વીપની ચારે તરફ જે સમુદ્રને અરુણध्य समुद्र ४ छे. मे वात (बाहिरिल्लाओ वेईयंताओ अरुणोदय समुह माया लीस जोयणसयसहस्साई) ॥ सूत्र द्वारा सतावमा मावे छ. मेरसे है અરુણુવર દ્વીપની જે વેદિકા છે તેના અન્તિમ છેડેથી આગળ વધતાં અરુણોદય नासन। समुद्र मावे छे. ते समुद्रमा में ताजीस १२ योभन ( ओसाहित्ता) प्रमाण मत२ पा२ ४२वाथी ( एत्थण चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमारण्णो શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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