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भगवती सूत्रे
निमज्जति ?, इति भगवद्वाक्यम्, गौतमः माह - 'हंता चिट्ठ' हन्त तिष्ठति, हे भदंत ! यथा जलपूर्णो घटो हदतले जलेन सह तिष्ठति तथा नौरपि जलपूर्णा ह्रदस्याधोदेशे तिष्ठतीति । भगवानाह - 'से तेणट्टेणं गोयमा' तत्तेनार्थेन हे गौतम! 'अस्थि णं जीवा
जात्र चिति' अस्ति जीवाश्च यावतिष्ठन्तोति, जीवाश्च अत्र यावत्पदेन - पुद्गलाच अन्योन्यवद्धा अन्योन्यस्पृष्टा अन्योन्यावगाढ़ा अन्योन्यस्नेहमतिबद्धा अन्योन्यघटतया ' इति संग्राह्यं तिष्ठन्तीति सम्बन्धः । यथा नौका हृदजलं च परस्परावगाहपूर्वकं तिष्ठति तथैव जीवाः पुद्गलाश्चान्योन्यावगाहपूर्वकं तिष्ठन्तीति सूत्राशयः ।। सू०६ ॥
हुए घडे की तरह नीचे बैठ जाती है न?, अर्थात् डूब जाती है न?, (हंता fast) हां भदन्त ! ऐसी वह नौका उस हद में डूब जाती है । जैसे जल पूर्ण घट हूद तल में जल के साथ २ डूब जाता है उसी प्रकार वह नौका कि जिस में सैकड़ों छोटे बडे छिद्रों द्वारा जल आ आ कर लबालब भर गया है डूब जाती है । ( से तेणट्टेणं गोयमा ! अत्थि णं जीवा य जाव चिट्ठेति) इसी कारण हे गौतम! मैं ऐसा कहता हूं जीव कि यावत् पहिले कहे हुए की तरह रहते हैं। यहां जो " यावत् " पद आया है उससे “पुलाच, अन्योन्यबद्धा अन्योन्यस्पृष्टा अन्योन्यावगाढा अन्योन्यस्नेहप्रतिबद्धा अन्योन्यघटतया " इस पूर्वोक्त पाठ का संग्रह किया गया है । तात्पर्य इस सूत्र का ऐसा है कि जिस प्रकार नौका और हद जल ये दोनों परस्पर में अवगाहपूर्वक रहते हैं उसी प्रकार से जीव और पुद्गल भी आपस में एक दूसरे में अवगाहपूर्वक रहते हैं || सू०६ ॥
66 આગળ
अरथे ते नाव भरेसा घडानी प्रेम सरोवरमां डूजी लय छे चिट्टइ ) हे भगवन् खेवी नाव सरोवरमा अवश्य डूजी लय छे, પાણીથી ભરેલા ઘડા સરોવરની અંદર ડૂબી જાય છે તેવી રીતે સેંકડો નાનાં भोटां छिद्रोवाजी छे नोडा पशु डूजी जय छे. ( से तेणट्टेणं गोयमा ! अस्थि णं जीवा य जाव चिट्ठ ंति) हे गौतम! तेथी ४ हु खेभ उडु छु डेवो. उह्या प्रमाणे रहे छे ” त्यां सुधीना पाई अड पुद्गलाय, अन्नमन्नबद्धा, अन्नमन्नपुट्ठा, सिणेहपडिबद्धा अन्नमन्नघडत्ताए " आ पूर्वोत पाठ ભાવ એવા છે કે જેવી રીતે નાવ અને સરોવરનું પાણી એ મને અવગાહ પૂર્ણાંક રહે છે, એવી જ રીતે જીવ અને પુલે પણ પરસ્પર અવગાહ पूर्व रहे छे. ॥ सू. ६॥
यह वडे "
४२वो. अडीं (जाव ) " यावत् ” अन्नमन्नमो गाढा, अन्नमन्न उरायो छे. या सूत्रो
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
नहीं ? ( हंता भेवी रीते