________________
९५०
भगवतीसूत्रे टीका-'अन्नउत्थियाणं भंते ' अन्नथिकाः खलु भदन्त ! 'एषमाइक्खति' एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण आख्यान्ति कथयन्ति सामान्येन ' भासन्ति' भाषन्ते विशेषण ' पनवेंति' प्रज्ञापयन्ति हेतुदृष्टान्तादिना 'परुति ' प्ररूपयन्ति स्वबुध्या प्ररूपणां कुर्वन्ति किं प्ररूपयन्ति इत्याह-' एवं खलु रायगिहस्स नयरस्स' एवं खलु राजगृहस्स नगरस्य 'बहिया' बहिः वाह्यप्रदेशे इत्यर्थः 'वैभारस्स पव्वयस्स ' वैभारपर्वतस्य — अहे ' अधः अधस्तात् पर्वतस्योपरिनीचभागे 'एत्थणं महं एगे हरए आप्ये ' अध पन्नत्ते' अत्र खलु महानेको इद आप्यः अपां जलानां प्रभव उत्पत्तिस्थानं दो विद्यते अथवा 'अधे' अधोनामकः एकः महान्दो विद्यते इति प्रज्ञप्तः कथितः 'अणेगाई जोयणाई आयामविकखंभेणं ' अनेका नियोजनानि आयामविष्कंभेणं दैयविस्ताराभ्यामनेकयोजनपरिमाणः पुनश्च कीदृशः सः और अपने स्थान पर जा बैठे ॥ १५ ।।
टीकार्थ-( अन्न उत्थिया णं भंते ) हे भदन्त ! अन्यतीर्थिक लोक ( एवं आइक्खंति ) सामान्यरूप से इस ( वक्ष्यमाण ) प्रकार से कहते हैं ( भासंति ) कोई २ विशेष प्रकार से कहते हैं, कोई २ हेतु दृष्टान्त आदि द्वारा ( पनवेंति ) अपने कथित विषय की पुष्टि करते हैं (परुति) तथा कोई २ अपनी बुद्धि के अनुसार प्ररूपणा करते हैं कैसी प्ररूपणा करते हैं सो बताया जाता है (एवं खलु रायगिहस्स नयरस्स) राजगृह नगर के बाहर ( वेभारस्स पव्वयस्स ) वैभार पर्वत के ( अहे ) नीचे अर्थात् पर्वत के ऊपर के नीचे भाग में एत्थ णं महं एगे हरए अप्पे (अघे ) पन्नत्ते ) जल की उत्पत्ति का स्थान भूत एक हूद जलाशय है जो बहुत बडा है । इसका नाम अध है । ( अणेगाइं जोयणाई आयाમહાવીરને વંદણ કરી નમસ્કાર કર્યો અને પિતાને સ્થાને બેસી ગયા ૧પ
10-" अन्नउत्थिया णं भंते ! " महन्त ! अन्यथि। ( अन्य तार्थिक एवं आक्खति "सामान्य रीत मा प्रमाणे (नीये ह्या प्रमाणे) ड, “भासंति" विशिष्ट प्ररे समाव छ, “पन्नति" ।
४ तु दृष्टांत माह द्वारा पोतानी मान्यताने पुष्टिमा छ, ( परूवेति ) तथा ४ । पोतानी मुद्धि अनुसार ५३५९।। ४२ छे 3-“ एवं खलु रायगिहस्स नयरस्स" २००४ नगरनी महार" बेभारस्म पव्वयस्स अहे" वैमार पतनी नीये मेटले पतनी ७५२, नीयन। मामा " एत्थ णं मह एगे हरए आप्पे ( अधे) पन्नत्ते " नी यत्तिना स्थान३५ मे (२५) छ. २ पार विश छे. तेनु नाम 'म '2. “ अणेगाइं जोयणाई
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨