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भगवतीसूत्रे
गौतम ! एवमाख्यामि भाषे प्रज्ञापयामि प्ररूपयामि एवं खलु रानगृहस्य नगरस्य बहिर्वैभारपर्वतम्यादरसामंतेऽत्र तहातपोपतीरप्रभवो नाम प्रस्रवणः प्रज्ञप्तः पञ्चधनुः शतानि आयामविष्कं भेण नानाद्रुमषण्डमण्डितोद्देशः-सश्रीकः प्रासादीयो दर्शनीयोऽभिरूप स्तत्र खलु बहवे उष्णयोनिका जीवाश्च पुद्गलाचोदकतयाऽवक्राममिच्छंते एवमाइक्खंति ) जो वे अन्ययूथिक ऐसा कहते हैं यावत् अन्यतीर्थिकों ने जो कहा है (मिच्छंते एवमाइक्खंति ) वह सब उन्हों ने मिथ्या कहा है (जाव सव्वं नेयम्व) तथा हृद के विषय में भी जो कहा है वह ठीक नहीं कहा है । ( अहं पुण गोयमा एवमाइक्खामि) हे गौतम ! मैं तो इस इद के विषय में ऐसा कहता हूं (भासमि ) ऐसा भाषण करता हूं ( पनवेमि ) ऐसा समझाता हूं (परूवेमि) ऐसी प्ररूपणा करता हूं। कि ( एवं खलु रायगिहस्स बहिया वेभारपव्वयस्स अदरसामंते एस्थ णं महातवोवतीरप्पभवे नाम पासवणे पनत्ते) राजगृह नगर के बाहर वैभारपर्वत के पास महातपोपतीरप्रभव इस नाम का प्रस्रवण-झरना है । (पंचधनुसयाई आयामविक्खंभेणं) इसकी लंबाई पांचसौ धनुष की है। 'णाणादुम खंडितमंडित उद्देसे' इसका अग्रभाग अनेक द्रुमखंडो से मंडित है (सस्सिरीए पासादीए) इसकी शोभा बहुत ही निराली है। चित्तको लुभावे ऐसायह सुन्दर है (दरसणिज्जे) देखनेवालोंकी आखें देखते २ इसे कभी थकती नहीं हैं । ( अभिरूवे) मिच्छिते एवम इक्खंति" ते अन्ययूथि। मेरे 3 छ, मेरे भाषण ४२ छ. मेवी प्रज्ञापन॥ ४२ छ, मेवी प्र३५ ४२ छ " मिच्छ ते एवमाइक्खंति" ते मिथ्या ४ छ. “जाब सव्व नेयव" तथा ४ विषेर्नु सभर्नु ४थन ५ मिथ्या छ-ते ४थन सायु नथी. " अहं गोयमा ! एवमाइक्खामि" है गौतम ! ये ४ (सरो१२ ) न विषयमाहुत बुराई छु, “ भासामि " मे मा ४३ छु, ( पन्नवेमि ) मेवी प्रज्ञापन। ४३ छु',( परूवेमि) पी ५३५६४॥ ४३ छु है ( एवं खलु रायगिहस्स नयस्स बहिया वेभारपव्ययस्स अदूरसामंतो एत्थ णं महातवोवतीरप्पभवे नामं पासवणे पन्नत्ते) २२२४ ना२नी मा२ वैमा२ पतनी पासे — भातपायती२' प्रम नमन अ छे. (पंच धनुसयाई आयामविक्खंभेणं) तेनी मा मने पडी. जा पांय से धनुषप्रमाण छ. ( णाणादुमखंडमंडित उसे ) तेन समार विविध वृक्षसभूडाथी मति छ. ( सरिसरीए पासादीए ) तेनी शाला घशी महमुत छ-चित्तने खोलावे ते ते मा४५४ छ. ( दरसणिज्जे ) तेने नेता शनी मो थाती १ नथी. ( अभिरूवे ) त्यांना ४२ मा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨