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________________ ____भगवतीसूत्रे पूर्णप्रमाणः 'वोलहमाणे, व्यपलोटयन , अतिशयजलवत्त्वेन छर्घमानजल इत्यर्थः। 'वोसट्टमाणे' ति विकसन् जलाधिक्यात् विकास प्राप्नुवन् जलेन वर्द्धमान इत्यर्थः, 'समभरघडताए'त्ति समभरघटतया, समो न विषमो घटैकदेशमनाश्रितत्वेन भरो जलसमूहो यस्मिन् स समभरः सर्वथा भृत इति समभरः, समशब्दः सर्वार्थकोपि विद्यते, समभरश्वासौ घटश्चेति समभरघटः समभरघट इवेति समभरघटस्तस्य भावः समभरघटता, तया समभरघटतया सर्वथा संभृतघटाकारतया तिष्ठतीत्यर्थः । 'अहे णं केइ पुरिसे तंसि हरयंसि एगं महं नावं' अथ खलु कश्चित् पुरुषः तस्मिन् हृदे एका महती नावं-नौकाम् , कीदृशीमित्याह-'सयासवं' शताश्रवाम् , आ ईषत् स्रवति-क्षरति जलं येभ्यस्ते आस्रवाः सूक्ष्मरन्ध्राणि, ते सन्तो विद्यमाना यत्र सा सदास्रवा, ताम् । यद्वा-सदासर्वकाले आस्रवति जलं यस्याः सा सदास्रवा, ताम् , यद्वा-'शतास्रवाम्' इतिच्छायापक्षे शतसंख्यका आस्रा यस्यां सा शतासवा, ताम् । तथा 'सयछिदं' शतच्छिद्राम् छिद्राणि बृहत्तररन्ध्राणि शतानि-शतसंख्यकानि छिद्राणि बृहत्तररन्ध्राणि यस्यां सा शतछिद्रा, ताम् बृहत्तररन्ध्रवती कुछ कम भी भरा होने पर व्यवहार में लोग कह दिया करते हैं कि यह पूरा भरा है-सो ऐसा भरा हुआ यहां नहीं समझना चाहिये किन्तु उस इदमें पानी अपने प्रमागमें जितना भरा जा सकता हो उतना पानी उसमें भरा हो, इसी बात को प्रकट करने के लिये यहां "पुण्णप्पमाणे" पद दिया गया है, अर्थात् वह ऐसा इद-जलाशय हो जो खूब ऊपर तक लबालब भरा हो और इसी कारण जिसमें से जल छलक रहा हो अर्थात् लबालब भरे होने के कारण जिसमें से जल बाहर भी निकल जाता हो तथा जल की अधिकता से जो विकास को अर्थात् वृद्धि को प्राप्त हो रहा हो और देखने पर ऐमा मालूम देता हो कि मानो जल से लबालब भरा हुआ यह एक विशाल घड़ा ही रक्खा है। (अहे णं केइ पुरिसे तंसि हरयसि एगं महं नावं सयासवं सयछिदं ओगाहेज्जा) ऐसे उस इद में कोई पुरुष एक बड़ी नौका कि जिसमें छोटे २ सैकड़ों छिद्र વ્યવહારમાં લેકે એવું કહે છે કે તે ભરેલું છે, અહીં એવા સરોવરની વાત નથી. પણ જેટલું પાણી ભરાઈ શકે તેટલું ભરેલું છે એમ બતાવવાને માટે मही "पुण्णप्पमाणे" ५६ भूयुं छे) मेट पालीथी छस मरेतु ते સરોવર હોય અને છોછલ ભરેલું હોવાથી જેમાંથી પાણું બહાર પણ ચાલ્યું જવું હોય તથા પાણીની અધિકતાથી જે વિકાસ પામી રહ્યું હોય, અને પાણીથી waive लरेखा ५२२ मा डाय. (अहेण केइ पुरिसे तसि हरयसि एग महं नावं सयासव सयछिदं ओगाहेज्जा) पा सरोवरमा ७ भास मे શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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