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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २ उ०५ सू० १४ पर्युपासनाफलनिरूपणम् ९३९ मफलम् स खलु भदन्त ! संयमः किं फलः ? अनास्त्रवफलः एवमनास्रवस्तपः फलः, तपोव्यवदानफलम् तत् खलु भदन्त ! व्यवदानं किं फलम् ? व्यवदानम् अक्रियाफलम् सा खल्लु भदन्त ! अक्रिया किं फला ? सिद्धिपर्यवसानफला प्रज्ञप्ता गौतम ! गाथा-श्रवणं ज्ञानश्च विज्ञानं प्रत्याख्यानश्च संयमः । अनास्रवस्तपश्चैव व्यवदानमक्रियासिद्धिः इति ॥ मू-१४ ॥ फल वाला होता है ? ( संजमफले ) वह प्रत्याख्यान संथमफल वाला होता है । ( से ण भंते ! संजमे किं फले ) हे भदन्त ! संगम किस फलवाला होता है ? ( अणण्हयफले ) संयम अनास्रव फलवाला होता है। एवं अणहए तवफले ) इसी तरह से अनास्रव नप फलवाला होता है । (नवे वोदाणफले) तप व्यवदान फलवाला होना है। (से णं भंते ! बोदाणे किं फले ) हे भदन्त वह व्यवदान (कर्मनिर्जरा) किस फलवाला होता है। (वोदाणे अकिरिया फले ) वह व्यवदान अक्रियाफलवाला होता है। (से णं भंते ! अकिरिया किं फलो) हेभदन्त । अक्रिया किस फलवाली होती है ? ( सिद्धि पज्जवसाणफला पन्नत्ता गोयमा !) हे गौतम ! अक्रिया अन्त में सिद्धि फल वाली होती है। गाथा-(सवणे णाणे य विनाणे पच्चक्खाणे य संजमे, अणण्हये तवे चेव वोदाणे अकिरिया सिद्धि ) पर्युपासना से श्रवण, श्रवण से ज्ञान, ज्ञान से विज्ञान विज्ञानसे प्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान से संयम, संयम से अनास्रव, अनास्रव से तप, तप से व्यवदान, व्यवदान से अक्रिया और अक्रिया से सिद्धि प्राप्त होती है ॥ मू-१४ ॥ ( संजमफले) ते प्रत्याध्यान सयभण डाय छे. ( से ण भंते ! संजमे किं फले !) ॐ महन्त ! सयमनु शु मणे छ ! (अणण्हय फले) संयम मनासय ३॥ पाणे छे. (एवं अगहए तब फले) से प्रभारी मनासपनु ३० त५ छ, ( तवे वोदाणफले) त५ व्यवहान (नि। पाणु डाय छे. (से. णं भंते ! वोदाणे किं फले ?) महन्त ! व्यवहाननु शु भणे छ! (बोदाणे अकिरिया फले) ते व्यवहान मठियावाणुहोय छे. (साण भंते ! अकिरिया किंफला ! ) महन्त ! मध्यिानु शुण भणे छ ? (सिद्धिपज्जवसाण फला पन्नत्ता गोयमा ! ) 3 गौतम ! मठिया मत सिद्धि पाणी हाय छे.
गाथा-(सवणे णाणे य विनाणे पच्चक्खाणे य संजमे, अणण्ण्हये तवे चेव वोदाणे अकिरिया सिद्धी) पर्युपासनाथी श्रवण, श्रवणुथी ज्ञान, ज्ञानथी विज्ञान, વિજ્ઞાનથી પ્રત્યાખ્યાન,પ્રત્યાખ્યાનથી સંયમ, સંયમથી અનાસ્ત્ર, અનાસવથી તપ, તપથી વ્યવદાન વ્યવદાનથી આકિયા, અને અક્રિયાથી સિદ્ધિ પ્રાપ્ત થાય છે. સૂ૧૪મા
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨