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प्रमेयचन्द्रिका टी० श०२ उ०५ सू० १३ पाचवा॑पत्यीयविहारोत्तरनिरूपणम् ९:५ ‘णो चेव णं आयभाववत्तव्ययाए' नौचैव खलु आत्मभाववक्तव्यतया, हे गौतम ! स्थविरैर्यत् प्रतिपादितं तत्सर्वं सत्यमेव ते च स्थविराः तादृशार्थप्रकाशने समर्थाः यावदुपयोगादिमन्तः भगवता पार्श्वनाथेन प्रकाशितं प्रवचनं तत्सर्वं सत्यमितिभावः एतदर्थे मदीयं मतं यत् तदपि श्रृणु इत्याशयेनाह 'अहंपि' इत्यादि 'अहंपि णं गोयमा' अहमपि खलु गौतम ! ' एवमाइक्खामि भासेमि पन्नवेमि परूवेमि' एवमाख्यामि भाषे प्रज्ञापयामि प्ररूपयामि ‘पुवतवेणं देवा देवलोएसु उवत्रज्जति' पूर्वतपसा देवाः देवलोकेषूत्पद्यन्ते 'पुव्वसंजमेणं देवा देवलोएमु उववज्जति' पूर्वसंयमेन देवा देवलोकेषत्पद्यन्ते — कम्मियाए देवा देवलोउत्तर देना जानते हैं ( जाव ) यावत् (पभू अउज्जियपलिउज्जिया) उपयोग वाले भी हैं और उत्तर देना जानते भी हैं । ( णो चेव णं आयभाववत्तव्ययाए) हे गौतम ! उन स्थविर भगवन्तों ने जो प्रतिपादित किया है वह सब सत्य ही है वे स्थविर भगवन्त उस प्रकार के अर्थ को अपने मन से नहीं कहा है किन्तु भगवान पार्श्वनाथ के द्वारा प्रकाशित जो प्रवचन है वह कहा है । इस विषय में जो हमारा मन्तव्य है हे गौतम! तुम उसको भी सुनो-( अहं पिणं गोयमा एवमाइक्खामि भासेमि पन्नवेमि परूवेमि ) हे गौतम ! पार्श्वप्रभु के सन्तानिक उन स्थविरों ने जो कहा है वैसा ही मेरा मन्तव्य है) कि (पुचतवेणं देवा देवलोएसु उववज्जंति ) पूर्वसराग तपके प्रभाव से देव देवलोकों में उत्पन्न होते हैं। ( पुष्वसंजमेणं देवा देवलोएस उचवज्जति ) पूर्वसरागसंयम से देव देवलोकों में उत्पन्न होते हैं। (कम्मियाए देवा देवलोएस्सु उववज्जंति,) संगयिोए देवा देवलोएसु उववज्जंति,) पुवतवेणं, पुव्वसंजमेणं, कम्मि २हित नथी मने विशेष शानथी हित नथा. ( णो चेव णं आयभाव वत. व्वयाए) है गौतम ! त स्थविर भगवन्ताये २ पातन प्रतिपादन ज्यु छेते સત્ય જ છેતેમણે તે પ્રકારને અર્થ તેમની કલ્પનાથી કર્યો નથી પણ ભગવાન પનાથ દ્વારા પ્રતિપાદિત જે અર્થ છે તેનું જ કથન કર્યું છે. આ विषयमा भा। अमिप्राय छ ते ५५ 3 गौतम ! तु साम. ( अह पि णं गोयमा ! एवमाइक्खामि, पन्नवेमि, परवेमि ) गौतम ! पाश्वनाथना सता नि: स्थविरोना jar भा३ मतव्य छ : (पुवतवेण देवा देवलोएसु उत्रवज्जति ) पूर्व स२२॥ तपना प्रमाथी देवो वसोम स्पन्न थायछे, (पुव्वसंजमेण देवा देवलोएसु उववज्जति ) पूर्व स। सयभथी हेवा व शोभा पन्त थाय छे.( कम्मियाए देवा देवलोएसु अवज्ज ति, संगियाए देवा देवलोएसु उत्रवज्जति ) अमिताथी देवो भi Gत्पन्न थाय छ, सगितायी
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨