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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० श० २ उ०५ सू०१३ पार्श्वापत्यीय विहारोत्तर निरूपणम् ९२५ “तएण से भगवं गोयमे " ततः खलु स भगवान् गौतमः “ इमी से कहाए लट्ठे समाणे' एतस्याः कथायाः लब्धार्थः सन् 'जायसड्ढे जाव समुप्पनको उहल्ले' जातश्रद्धो यावत् समुत्पन्न कुतूहल: इह यावत्पदेन 'जायसंसए जायकोऊहल्ले उप सडे उप्पण्णसंस उप्पण्णको ऊहल्ले संजायसडे संजाणसंसए, संजायको ऊहल्ले सप्पन्नसडे समुपसंस' इति ग्रहणं तत्र 'जायसड़े ' जातश्रद्धः = जाता - प्रागभूता सम्प्रति सामान्येन प्रवृत्ता श्रद्धा तत्त्वनिर्णयविषयिका तपः संयमनिर्णयात्मिका वांछा यस्य स जातश्रद्धः " जायसंसए" जातसंशयः जातः प्रवृत्तः संशयो यस्य स तथोक्तः संशयः तत्र कारणं तु तपः संयमस्य तथा देवलोकगमनस्य विभिन्नतया स्थविराणामुत्तरप्रदानम्. जायको उल्ले जातकुतूहल: जातं 64 " = मिलकर बातें कर रहे थे और ऐसा कह रहे थे कि यह उन स्थविरों का कथन माना जावे ऐसा कैसे हो सकता है । इस प्रकार की यह चर्चा उन श्रावकों की गौतम के कान में पडी (तएणं ) सो ( से भगवं ग) वे भगवान् गौतम ( इमी से कहाए लट्ठे समाणे ) इस चर्चा से परिचित होकर ( जायसडे जाव समुप्पनको उहल्ले ) इस बात को जानने की इच्छा वाले हुए और उन्हें यावत् इस विषय में कुतूहल भी उत्पन्न हुआ। अर्थात् जिसे श्रद्धा उत्पन्न हुई है वह जात श्रद्ध हैगौतम स्वामी ने जब श्रावकों के मुख से पूर्वोक्त बात को सुना तब उन्हें इस प्रकार की सामान्य रूप से श्रद्धारूप वांछा उत्पन्न हुई कि तप और संयम के स्वरूप का निर्णय होना चाहिये, इस प्रकार की वांछा उन्हें पहिले उत्पन्न नहीं हुई थी श्रावकों के वचनों को सुनकर ही अब નગરના શ્રાવકાની આ પ્રકારની ચર્ચા ગૌતમસ્વામીને કાને પડી, તQf” ત્યારે “રે भगवं गोयमे ” ते लगवान गौतम " इमीसे कहाए लट्टे समाणे " ते यर्थाथी परिचित थर्ध ने 66 जायसढे जाव समुप्पन्न को उहल्ले " ते वात लागुनाने શ્રદ્ધાયુક્ત થયા, તે સ્થવિરાનું કથન સત્ય છે કે નહીં તે ભગવાન મહાવીરને પૂછીને નક્કી કરવાની શ્રદ્ધા તેમનામાં જન્મી અને તે જણવાનું કુતૂહલથયું. જેને શ્રદ્ધા ઉત્પન્ન થઇ હૈાય તે જાતશ્રદ્ધ કહેવાય છે. ગૌતમ સ્વામીએ જ્યારે શ્રાવકાના મુખેથી પૂર્વક્તિ વાત સાંભળી ત્યારે તેમને આ પ્રકારની સામાન્ય શ્રદ્ધારૂપ વાંછા ઉત્પન્ન થઇ કે તપ અને સંચમના સ્વરૂપના નિર્ણય થવા જોઈએ. આ પ્રકારની વાંછાં તેમના હૃદયમાં પહેલાં ઉત્પન્ન થઈ ન હતી— શ્રાવકની વાત સાંભળીને જ હવે તે વાંછા ઉત્પન્ન થઇ હતી. તેથી તેમને શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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