________________
९०८
भगवतीसूत्र वानित्यर्थः । छठ छटेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं' षष्ठषष्ठेन अनिक्षिप्तेन निरन्तरेण तपः कर्मणा ' संजमेणं तवसा अप्षाणं भावेमाणे विहरइ' संयमेन तपसा आत्मानं भावयन् यावत् विहरति. 'तए णं से भगवं गोयमे' ततः खलु स भग. वान् गौतमः ‘छटक्खमणपारणगंसि ' षष्ठक्षपणपारणके. 'पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ ' प्रथमायां पौरुष्याम् स्वाध्यायं करोति 'वीयाए पोरसीए झाणं झियाइ' द्वितीयायां-पौरुष्यां ध्यानं ध्यायति-सूत्रार्थचिन्तनरूपं ध्यानं ध्यायति प्रयोग नहीं करते थे, उसे उन्हों ने अपने शरीर के भीतर ही संक्षिप्तसंकुचित करके रखा था। (छ? छट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं ) अन्तर रहित ये छट्ट छट्ट की तपस्या करते थे अर्थात्- दो उपवास फिर एक पारणा, दो उपवास फिर एक पारणा इस तरह के तपः कर्म से एवं (संजमेणं तवसा) सत्रह प्रकार के संयम और अनशनादिक बारह प्रकार के बाह्य आभ्यन्तर तप से ये (अप्पाणं भावे माणो विहरइ) अपनी आत्मा को भावित करते विचरते रहते थे। (विहरइ) क्रियापद का अर्थ विहार करना होता है-जिसका भाव यहां पर ऐसा है कि ये पूर्वोक्त तपः संयमादि से युक्त अपनी आत्मा में समाये रहते थे। (तएणं से भगवं गोयमे ) बाद में वे भगवान् गौतम (छट्टक्खमणपारणगंसि ) जब छ? की तपस्या के अनन्तर पारणा करते थे तब उस दिन वे (पढमाए पोरिसीए) प्रथम पौरुषी में (सज्झायं करेइ) स्वाध्याय किया (बायाए पोरिसीए) द्वितीय पौरुषी में सूत्र अर्थ के चिन्तनरूप ध्यान किया,
છે. પણ તેઓ તે તેજલેશ્યાને પ્રયોગ કરતા નહીં. તેમણે તેને પિતાના शरीरमा १ सक्षित (सथित) रीने सभी उती. (छटु छद्रेणं अणि खित्तेणं तवोकम्मेणं) तेसो निरन्तर ७८४ने पा२ छ? ४२॥ उता. सेटले કે વચ્ચે આંતરે પડ્યા વિના બે ઉપવાસને પારણે બે ઉપવાસ સતત કર્યા ४२ता उता. मामा२नी तपश्चर्याथी (संजमेणं तवसा) भने सत्तर मारना सयम अने मनशनाहि मा२ प्रश्न या मने मातरि तपथी तेया ( अप्पाणं भावे माणो विहरइ) पोताना मात्माने सावित ४२॥ २. ( विहरह) सटो વિહાર કરે-પણ તે ક્રિયાપદને અહીં એ ભાવાર્થ છે કે તેઓ પૂર્વોક્ત सयम त५ माथी युत पोताना मात्मामा लीन २ता Cal. (तएणं से भगव गोयमे) ते लगवान गौतम (छन्द्रभूति) (टुक्खमणपारणगमि) ७५४नी तपस्याने मन्ते पा२णाने हिवसे ( पढमाए पोरिसीए) पडेसे पारे (सज्झायं करेइ ) २१॥ध्याय यो, (बीयाए पोरिसीए ) मीर पडारे सूत्र
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨