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प्रमेयचन्द्रिका टी० श०२ उ०५ सू० १२ पापत्यीयविहारोत्तरनिरूपणम् ९०९ ' तइयाए पोरसीए अतुरियमचवलमसंभंते मुहपोत्तियं पडिलेहेइ' अत्वरितमचपलमसंभ्रान्तो मुखवत्रिका प्रतिलेखयति, तत्रात्वरितम् त्वरारहितम् । अचपलमिति. मानसिक चपलतारहितम्. असंभ्रान्तः प्रासुकशुद्धआहारो विनश्यति नवेति भ्रान्तिरहितः ' मुहिपोत्तियं ' सदोरक मुखबस्त्रिकाम्. प्रतिलेखयति, ' पडिलेहित्ता' प्रतिलेख्य — भायणाई क्त्थाइं पडिलेहेइ ' भाजनानि काष्ठनिर्मितपात्राणि वस्त्राणि प्रतिलेखयति ‘पडिलेहित्ता भायणाई पमज्जई' (तइयाए पोरिसीए अतुरियमचवलमसंभंते मुहपोत्तियं पडिलेहेइ ) तृती य पौरुषी में शारीरिक उतावले से और मानसीक अस्थिरता से रहित होकर, अर्थात्-त्वरा-शीघ्रता से रहित होकर ही मुहपत्ति की प्रतिलेखना करते जल्दी-जल्दी प्रतिलेखना नहीं करते और न उस समय मन को अस्थिर रखते किन्तु उपयोगपूर्वक-उपयोगकी स्थिरता पूर्वक-ही प्रतिलेखना करते थे इन के मन में इस प्रकार की चिन्तारूप भ्रान्ति उत्पन्न नहीं होती कि आज पारणा के दिन मुझे प्रामुक शुद्ध आहार प्राप्त होगा या नहीं, यदि प्रतिलेखनो में देरी हो जावेगी तो शुद्ध प्राप्सुक आहार मिलेगा कि नहीं मिलेगा, ऐमा भाव उस समय उनका नहीं होता था किन्तु जिस समय पर जो मुनि की क्रिया होती उसे उसी समय करते और आगे पीछे की चिन्ता छोड़ देते । (पडिलेहित्ता) मुँहपत्ति की प्रतिलेखना करके (भायणाई वत्थाई पडिलेहेइ) तो फिर भाजनों की-पात्रों की और वस्त्रों की प्रतिलेखन की (पढिलेहित्ता) उनकी प्रतिमर्थन यिन्तन ३५ ध्यान ज्युं, ( तइयाए पोरिसीए अतुरियमचवलमसंभ'ते मुहपोत्तियं पडिलेहेइ) श्री पारे शारी२Gin मने मानसि Salવળ અને માનસિક અસ્થિરતાથી રહિત થઈને-મુખવસ્ત્રિકાની પ્રતિલેખના કરી તેઓ ઝડપથી પ્રતિલેખન કરતા નહીં, તે સમયે મનને અસ્થિર રાખતા નહીં પણ ઉપયોગ પૂર્વક ઉપયોગની સ્થિરતા પૂર્વક પ્રતિલેખના કરતા હતા. તેમના જ્ઞાનમાં તેમને એ પ્રકારની ચિન્તા રૂપ બ્રાન્તિ ઉત્પન્ન થતી નહીં કે આજે પારણાને દિવસે મને શુદ્ધ પ્રાસુક આહાર મળશે કે નહીં, પ્રતિલેખનામાં મોડું થઈ જશે તે કદાચ પ્રાસુક આહાર નહી મળે એવી ચિન્તા તેમને થતી નહીં. જે સમયે મુનિએ કરવા યોગ્ય ક્રિયા હોય તે સમયેચિત કિયા તેઓ બરાબર ३२ता मने ते मते २02101 पानी यिन्ता छोडी ता. ( पडीलहिता) भु७५. त्तिनी प्रतिमा ४शन ( भायणाई वत्थाइ पडिलेहेइ ) पात्रो मने परोनी प्रतिमना ४३१.( पडिलेहित्ता) तभनी प्रतिमा परीने ( भायणाइ पमज्जा)
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨